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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदी रणा ( २१९ हीणा । वीरियंतराइय० अ० गुणहीणा। सम्मत्त० अणंतगुणहीणा। पढमाए पुढवीए सव्वतिव्वाणुभाग मिच्छत्तं । केवलणाणावरण-केवलदंसणाव० अ० गु० होणा। अणंताणुबंधिचउक्कम्मि अण्णदर० अ० गु० हीणा। संजलणचउक्कम्मि अण्णदर० अ० गु० हीणा । पच्चवखाणचउक्कम्मि अण्णदर० अ० गु० हीणा । अपच्च० चउक्क० अण्णद० अ० गु० हीणा । मदिणाणावरण० अ० गु० हीणा । सुदणाणाव० अ० गु० हीणा । मणपज्जवणाणाव० अ० गु० हीणा । णिद्दा० अ० गु० हीणा । पयला० अ० गु० हीणा । असाद० अणंतगुणहीणा । णqसयवेद० अ० गु० हीणा । अरदि० अ० गु० हीणा । सोग० अ० गु० हीणा । भय० अ० गु० हीणा । दुगुंछा० अ० गु० हीणा । णीचागोद० अजसगि० अ० गु० होणा। णिरयगइ० अ० गु० हीणा० । णिरयाउ० अ० गु० हीणा । साद० अ० गु० हीणा। रदि० अ० गु० हीणा । हस्स० अ० गु० हीणा । कम्मइय० अ० गु० हीणा । तेजइय० अ० गु० हीणा । वेउब्विय० अ० गु० हीणा । ओहिणाण० ओहिदंसण० अ० गु० हीणा। सम्मामिच्छत्त० अ० गु० हीणा । दाणंतराइय० अ० गु० हीणा । लाहंतराइय० अ० गु० हीणा। भोगंतराइय० अ० गु० हीणा। परिभोगंतराइय० अ० गु० हीणा । अचक्खु० अ० गु० हीणा । चक्खु० अ० गु० हीणा । वोरियंतराइय० अ० गु० उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। प्रथम पृथिवीमें सबसे तीव्र अनुभागवाली यिथ्यात्व प्रकृति है। केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अनन्तानुबन्धिचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। संज्वलनचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। प्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। मतिज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। श्रुतज्ञानावरणकी उदी रणा अनन्तगुणी हीन है। मनःपर्यरज्ञानावरणकी उदीरणा अन्नतगुणी हीन है। निद्राकी उदीरणा अनन्तगणी हीन है। प्रचलाकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। असातावेदनीयकी उदीरणा अनन्तगुणो हीत है । नपुंसकवेदकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अरतिकी उदीरणा अनन्तगणी हीन है। शोककी उदोरणा अनन्तगुणी हीन है। भयकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । जुगुप्साकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । नीचगोत्र और अयशकीर्तिकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। नरकगतिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । नारकायुकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। सातावेदनीयकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। रतिकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। हास्यकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। कार्मणशरीरकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। तैजसशरीरकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। वैक्रियिकशरीरकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। दानान्तरायकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है । लाभान्तरायकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। भोगान्तरायकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। परिभोगान्तरायकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। अचक्षुदर्शनावरणकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। चक्षुदर्शनावरणकी उदीरणा अनंतगुणी हीन है। Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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