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________________ २१८ ) छक्खंडागमे संतकम्म वरण० असादावेदणीय ० अणंतगुणहीणा । अणंताणुबंधीसु* अण्णदरउदीरणा अणंतगुणहीणा । चदुसंजलणम्मि अण्णदर० अणं गु० हीणा । पच्चक्खाणचउक्कम्मि अण्णदर० अणं० गु० होणा । अपच्च० चउक्क० अण्णदर० अ० गु० होणा। मदिणाणावर० अणंतगुणहीणा । सुदणाणावर० अ० गु० हीणा । मणपज्जवणाणावरण० अ० गु० हीणा । णवंसयवेद० अ० गु० होणा। अरदि० अणं० गु० हीणा । सोग० अ० गु० होणा। भय० अ० गु० हीणा । दुगुंछा अ० गु० हीणा । णिद्दा० अ० गु० हीणा । पयला० अ० गुणहीणा । णीचागोद० अजसगित्ति० अ० गु० हीणा । णिरयगइ० अ० गु० होणा। णिरयाउ० अ० गु० होणा। सादावेदणी० अ० गु० हीणा । रदि० अ० गुण० होणा । हस्स० अ० गु० होणा। कम्मइय० अ० गु० हीणा । तेजइय० अ० गु० हीणा । वेउ० अ० गु० हीणा । ओहिणाणाव० ओहिदसणाव० अ० गु० हीणा । सम्मामिच्छत्त० अ० गु० होणा । दाणंतराइय० अ० गुणहीणा । लाहंतराइय० अ० गु० होणा० । भोगंतराइय० अ० गु० हीणा । परिभोगंतराइय० अ० गु० हीणा । अचक्खुदं० अ० गु० हीणा । चक्खु० अ० गु० वरण, केवलदर्शनावरण और असातावेदनीयकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा उससे अनन्तगुणी हीन है । अनन्तानुबंधी कषायोंमें अन्यतर प्रकृतिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। चार संज्वलन कषायोंमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। चार प्रत्याख्यानावरण कषायोंमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। चार अप्रत्याख्यानावरण कषायोंमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। मतिज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। श्रुतज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। मनःपर्ययज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। नपुंसकवेदकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अरतिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। शोककी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। भयकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। जुगुप्साकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। निद्राकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । प्रचलाकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। नीचगोत्र और अयशकीर्तिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। नरकगतिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। नारकायुकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। सातावेदनीयकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। रतिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। हास्यकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। कार्मणशरीरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। तेजसशरीरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। वैक्रियिकशरीरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। दानान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। लाभान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। भोगान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। परिभोगान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अचक्षुदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । चक्षुदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। वीर्यान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। सम्यक्त्वकी * ताप्रती ' असादवेदणी० अणताणुबंधीसु' इति पाठः। ताप्रतावतोऽग्रे वक्ष्यमाणप्रकृतिबोध कपदानां मध्ये 'अणंतगणहीणा' इत्येतत्पदं नोपसभ्यते तत्तु प्रायः सदर्भस्यान्त एवैकवारमुपलभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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