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________________ (२१७ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा होणा। ओहिणाणाव० ओहिदसणाव० अणं० गु० हीणा। मणपज्जवणाणाव० अणंतगुणहीणा । णवंसयवेद० अणंत० हीणा । थोणगिद्धि० अणं० गु० हीणा। अरदि० अगं० गु० होणा० । सोग० अणंतगुणहोणा। भय० अगंतगुणहीणा । दुगुंछा० अगंतगुणहीणा। णिद्दाणिद्दा० अगंतगुणहीणा। पयलापयला० अणंतगुणहीणा । णिद्दा० अणंतगुणहीणा । पयला० अणंतगुणहीणा। णीचागोदअजसगित्ति० अणंतगुणहीणा। णिरयगइ० अणंतगुणहीणा। देवगइ अणंतगुणहीणा। रदि अणंतगुणहोणा। हस्स० अणंतगुणहीणा । देवाउ० अणं० गु० हीणा । णिरयाउ० अणंतगु० होणा। मणुगगइ० अणं० गु० हीणा । ओरालिय० अणं० गु होणा। मणुसाउ० अणं० गु० होणा। तिरिक्खाउ० अणंतगुणहीणा । इत्यिवेद० अणंतगुणहीणा। पुरिसवेद० अणंतगुणहीणा। तिरिक्खगइ० अणंतगुणहीणा । चक्खुदं० अ० गु० हीणा। सम्मामिच्छत्त० अ० गु० हीणा । दाणंतराइय० अ० गुण हीणा । लाहंतराइय० अ० गुणहीणा । भोगंतराइय० अणंतगुणहीणा । परिभोगंतराइय० अणंतगुणहीणा । अचक्खुदं० अ० गु० होणा। वीरियंतराइय० अ० गु० हीणा। सम्मत्त०अणंतगुणहीणा। णिरयगईए णेरइएसु सव्वतिव्वाणुभागं मिच्छत्तं । केवलणाणावरण० केवलदंसणा ज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। मनःपर्ययज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। नपुंसकवेदकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। स्त्यानगृद्धिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अरतिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। शोककी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। भयकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। जुगुप्साकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। निद्रानिद्राकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। प्रचलाप्रचलाकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। निद्राकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। प्रचलाकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। नीचगोत्र और अयशकी तिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । नरकगतिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। देवगतिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । देवायुकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । रतिकी उदीरणा अनन्तगुणो हीन है। हास्यकी उदीरणा अनन्तगणी हीन है। देवायुकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। नारकायुकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। मनुष्यगतिकी उदीरणा अनन्तगुणी ह न है। औदारिकशर रकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। मनुष्यायुकी उदं रणा अनन्तगुणी हीन है। तिर्यगायुकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। स्त्रीवेदकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। पुरुषवेदकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। तिर्यपातिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । चक्षुदर्शनावरण की उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उदोरणा अनन्तगुण हीन है। दानान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। लाभान्तराकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। भोगान्त रायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। परिभोगान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अचक्षुदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। वीर्यान्तरायको उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। सम्यक्त्वकीउदी रणा अनन्तगुणी हीन है। ___ नरकगतिमें नारकियोंमें सबसे तीव्र अनुभागवाली मिथ्यात्व प्रकृति है। केवलज्ञाना___Jain Education in+ताप्रतो 'भय० अणंतगुणहीणा' इति नास्तीदं वाक्यम् । only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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