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________________ २१६ ) छक्खंडागमे संतकम्म भंगो। एवं सत्थाणसण्णियासो समत्तो। परत्थाणजहण्णाणुभागसण्णियासो।। तं जहा-आभिणिबोहियणाणावरणीयस्स जहण्णाणुभागमुदीरेंतो सुद-केवलणाणावरण-केवलदसणाबरण-चक्खु-अचक्खुदंसणावरणीयाणं-णियमा जहण्णमुदीरेदि। एदेण कमेण परत्थाणसण्णियासो जाणिदूण यव्वो । एवं सण्णियासो समत्तो। ___ एवं सेसाणि अणुयोगद्दाराणि जाणिदूण णेयवाणि । अप्पाबहुअं दुविहं जहण्णमुक्कस्सं च । उक्कस्सए पयदं। तं जहा-सव्वतिव्वाणुभागंसादावेदणीयाणं। जसगित्ति-उच्चागोदाणुभागउदीरणा अणंतगुणहीणा । कम्मइय० अणंतगुणहीणा। तेजासरीर० अणंतगुणहीणा । आहारसरीर० अणंतगुणहीणा0। वेउव्विय० अणंतगुणहीणा। मिच्छत्त० अणंतगुणहीणा । केवलणाणावरण-केवलदंसणावरण-असाद० उदीरणा अणंतगुणहीणा। अणंताणुबंधीसु अण्णदरउदीरणा अणंतगुणहीणा । संजलणेसु अण्णदरउदी० अणंतगु० हीणा । पच्चक्खाणावरणेसु अण्णदरउ०अणंतगुणहीणा । अपच्चक्खाणावरणेसु अण्णदरउदी० अणंतगु० हीणा । मदिणाणावरणअणं० गु० हीणा । सुदणाणाव०अणं० गु० - - स्वस्थान संनिकर्ष समाप्त हुआ। . परस्थान जघन्य अनुभागके संनिकर्षका कथन करते हैं । यथा- आभिनिबोधिकज्ञानावरणके जघन्य अनुभाग उदीरणा करनेवाला श्रुतज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, चक्षुदर्शनावरण और अचक्षुदर्शनावरणके नियमसे जघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । इस क्रमसे परस्थान संनिकर्षको जानकर ले जाना चाहिये । इस प्रकार संनिकर्ष समाप्त हुआ। इसी प्रकारसे शेष अनुयोगद्वारोंको ले जाना चाहिये । अल्पबहुत्व दो प्रकार है- जघन्य अल्पबहुत्व और उत्कृष्ट अल्पबहुत्व । इनमें उत्कृष्ट अल्पबहुत्व प्रकृत है । यथा- सातावेदनीयकी अनुभागउदीरणा सबसे तीव्र अनुभागवाली है । यशकीर्ति और उच्चगोत्रकी अनुभागउदीरणा उससे अनन्तगुणी हीन है । कार्मणशरीरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । तैजसशरीरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। आहारकशरीरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । वैक्रियिकशरीरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । मिथ्यान्वकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण और असातावेदनीयकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । अनन्तानुबन्धी कषायोंमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। संज्वलन कषायोंमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । प्रत्याख्यानावरण कषायोंमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । अप्रत्याख्यानावरण कषायोंमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । मतिज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । श्रुतज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । अवधि इति पठः। Jain Education International ताप्रती ' केवलदसणावरण ०-चक्खुदसणावरणीयाणं' इति पाठः। ४ ताप्रती 'अणंतगणा ताप्रती 'मदिणाणावरणेसु अण्ण० उ० अणंत हीणा' इति पाठः। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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