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________________ उववकमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा ( २१५ अजहण्णं तो सुद-मदिआवरणाणं णियमा अणंतगुणमुदीरेदि । ओहि-मणपज्जवणाणावरणाणं छट्ठाणपदिदमुदीरेदि। चक्खुदंसणावरणस्स जहण्णाणु * भागमुदीरेंतो अचक्खुदंसणावरण-केवलदसणावरणाणं णियमा जहण्णमुदीरेदि । ओहिदसणावरणस्स सिया जहण्णं सिया अजहण्णमुदीरेदि । जदि अजहण्णमुदीरेदि तो छटाणपदिदं । सेसपंचण्णं दंसणावरणीयाणं अणुदीरओ। अचक्खुदंसणावरणीयस्स चक्खुदंसणावरणीयभंगो। ओहिदंसणावरणीयस्स जहण्णाणुभागमुदीरेंतो० चक्खु-अचक्खुदंसणावरणीयाणं जहण्णमजहण्णं वा उदीरेदि। जदि अजहण्णं तो णियमा अणंतगुणं । केवलदसणावरणस्स णियमा जहण्णमुदीरेदि। केवलदंसणावरणस्स जहण्णाणुभागमुदीरेंतो चक्खु-अचक्खु ओहिदंसणावरणीयाणं जहण्णमजहण्णं वा उदीरेदि । जदि अजहण्णं तो चक्खु-अचक्खु० अणंतगुणं, ओहिदसणावरणस्स छट्ठाणपदिदं । आउअ-वेदणिज्ज-गोदाणं णत्थि सत्थाणसण्णियासो। मोहणिज्ज-णामाणं. जाणिदूण णेयव्वं । दाणंतराइयस्स जहण्णाणुभागमुदीरेंतो सेसाणं चदुग्णं णियमा जहण्णमुदीरेदि । सेसचदुण्णमंतराइयाणं दाणंतराइय मतिज्ञानावरणके नियमसे अनन्तगुणे अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । वह अवधिज्ञानावरण और मनःपर्ययज्ञानावरणके षट्स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । चक्षुदर्शनावरणके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला अचक्षुदर्शनावरण और केवलदर्शनावरणके नियमसे जघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। वह अवधिदर्शनावरणके कदाचित् जघन्य और कदाचित् अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। यदि अजघन्यकी उदीरणा करता है तो षट्स्थानपतितकी उदीरणा करता है। शेष निद्रा आदि पांच दर्शनावरण प्रकृतियोंका वह अनुदीरक होता है । अचक्षुदर्शनावरणके संनिकर्षकी प्ररूपणा चक्षुदर्शनावरणके समान है। अवधिदर्शनावरणके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला चक्षुदर्शनावरणके और अचक्षुदर्शनावरणके जघन्य व अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। यदि वह अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है तो नियमसे अनन्तगुणे अनुभागकी उदीरणा करता है। केवलदर्शनावरणके नियमसे जघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। केवलदर्शनावरणके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरणके जघन्य व अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। यदि वह उनके अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है तो चक्षुदर्शनावरण व अचक्षुदर्शनावरण के अनन्तगुणे तथा अवधिदर्शनावरणके षट्स्थानपतित अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। ___ आयु, वेदनीय और गोत्र कर्मोके स्वस्थान संनिकर्ष सम्भव नहीं है। मोहनीय और नामकर्मके संनिकर्षको जानकर ले जाना चाहिये। दानान्तरायके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला शेष चार अन्तराय प्रकृतियोंके नियमसे जघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। शेष चार अन्तराय प्रकृतियोंकी विवक्षासे संनिकर्षकी प्ररूपणा दानान्तरायके समान है। इस प्रकार * अप्रतौ '-वरणस्स जहण गस्स जहण्णाणु-' इति पाठः। 8 अप्रयो: 'बरणीयस्समुदीरेंतो' इति पाठ:। * अ-काप्रयो: 'मोहणिज्जमाणाणं' इति प Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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