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________________ २१४.) छक्खंडागमे संतकम्म बोहियणाणावरणीयस्स उक्कस्समणुभागमुदीरेंतो साद-हस्स-रदि-तिण्णिआउअ-मणुस्स गइ-देवगइ-उच्चागोद-पंचंतराइयाणमण्णेसिं च पसत्थपयडीणं जासिमुदीरओ णिमया तासि मणुक्कस्समुक्कस्सादो अणंगुणहीणमुदीरेदि । एवमेदीए दिसाए अण्णेसि पि कम्माणं परत्थाणसण्णियासो जाणियूण कायव्वो। एवं परत्थाणुक्कस्ससण्णियासो समत्तो। एत्तो जहण्णओ सत्थाणसण्णियासो। तं जह-आभिणिबोहियणाणावरणीयस्स जहण्णाणुभागमुदीरेंतो सुद-केवलणाणावरणीयस्स णियमा जहण्णयमणुभागमुदीरेदि। ओहिमणपज्जवणाणावरणाणं सिया जहण्णं सिया अजहण्णमुदीरेदि । जदि अजहण्णं तो छट्ठाणपदिदमुदीरेदि । सुदणाणावरणीयस्स आभिणिबोहियणाणावरणभंगो। ओहिणाणावरणस्स जहण्णाणुभागमुदीरेंतो सुद-मदिआवरणाणं सिया जहण्णं सिया अजहण्णं वा उदीरेदि । जदि अजहण्णं णियमा अणंतगुणं । मणपज्जवणाणावरणीयस्स सिया जहण्णं सिया अजहण्णं वा उदीरेदि । जदि अजहणं तो छट्ठाणपदिद। केवलणाणावरण णियमा जहण्णमुदीरेदि । मणपज्जवणाणावरणस्स ओहिणाणावरणभंगो। केवलणाणावरणस्स जहण्णाणुभागमुदीरेंतो सेसाणं चदुण्णं पिछ जहण्णमजहण्णं वा उदीरेदि। उदीरणा करनेवाला सातावेदनीय, हास्य, रति, तीन आयुकर्म, मनुष्यगति, देवगति, उच्जगोत्र और पांच अन्तराय; इनका तथा अन्य भी जिन प्रशस्त प्रकृतियोंका उदीरक होता है वह नियमसे उनके उत्कृष्टकी अपेक्षा अनन्तगुणे हीन अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। इस प्रकार इसी रीतिसे अन्य कर्मोंके भी परस्थान संनिकर्षकी जानकर प्ररूपणा करना चाहिय । इस प्रकार परस्थान उत्कृष्ट संनिकर्ष समाप्त हुआ। यहां जघन्य स्वस्थान संनिकर्षकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-आभिनिबोधिकज्ञानावरणके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला श्रुतज्ञानावरण और केवलज्ञानावरणके नियमसे जघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । वह अवधिज्ञानावरण और मनःपर्ययज्ञानावरणके कदाचित् जघन्य अनुभागका और कदाचित् अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । यदि वह इनके अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है तो षट्स्थानपतितकी उदीरणा करता है। श्रुतज्ञानावरणकी विवक्षासे संनिकर्षकी प्ररूपणा आभिनिबोधिकज्ञानावरणके समान है । अवधिज्ञानावरणके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला श्रुतज्ञानावरण और मतिज्ञानावरणके कदाचित् जघन्य और कदाचित् अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । यदि अजघन्यकी उदीरणा करता है तो नियमसे अनन्तगुणे अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। मनःपर्ययज्ञानावरणके कदाचित् जघन्य और कदाचित् अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । यदि उसके अजघन्यकी उदीरणा करता है तो षट्स्थानपतितकी उदीरणा करता है । केवलज्ञानावरणके वह नियमसे जघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है। मनःपर्ययज्ञानावरणकी विवक्षासे संनिकर्षकी प्ररूपणा अवधिज्ञानावरणके समान है। केवलज्ञानावरणके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करनेवाला शेष चारों ही ज्ञानावरण प्रकृतियोंके जघन्य व अजघन्य अनुभागकी उदीरणा करता है । यदि अजघन्यकी उदीरणा करता है तो वह श्रुतज्ञानावरण व *ताप्रतौ 'जेसिमुदीरओ णियमा तेसि-' इति पाठः । ४ ताप्रतौ 'सेसाणं पि चदुण्णं' इति पाठ :। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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