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________________ ( १४ ) जीवोंकी अपेक्षा काल तथा नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर इनकी प्ररूपणा अनुभागभुजाकारउदीरणाके समान करने का उल्लेख करके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गयी है। पदनिक्षेपप्ररूपणा में पहले उत्कृष्ट स्वामित्वका विवेचन करके तत्पश्चात् जघन्य स्वामित्वका भी विवेचन करते हुए उत्कृष्ट और जघन्य अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की गयी है । वृद्धिउदीरणामें प्रथमतः स्थानसमुत्कीर्तनाका कथन करके तत्पश्चात् स्वामित्व आदि शेष अनुयोगद्वारोंका कथन भी अति संक्षेपमें किया गया है । इस प्रकारसे प्रदेशउदीरणाकी प्ररूपणा हो चुकनेपर यहां उदीरणा उपक्रम समाप्त हो जाता है। उपशामना उपक्रम - यहां उपशामनाके सम्बन्धमें निक्षेपयोजना करते हुए कर्मद्रव्य उपशामनाके दो भेद बतलाये है - करणोपशामना और अकरणोपशामना । इनमें अकरणोपशामनाका अनुदीर्णोपशामना यह दूसरा भी नाम है । इसकी सविस्तर प्ररूपणा कर्मप्रवादमें की गयी है । करणोपशामना भी दो प्रकारकी है- देशकरणोपशामना और सर्वकरणोपशामना । सर्वकरणोपशामनाके और भी दो नाम हैंगुणोपशामना और प्रशस्तोपशामना । इस सर्वकरणोपशामनाकी प्ररूपणा कसायपाहुडमें की जायगी, ऐसा निर्देश करके यहां उसकी प्ररूपणा नहीं की गयी है। इसी प्रकार देश करणोपशामनाके भी दूसरे दो नाम हैं- अगुणोपशामना और अप्रशस्तोपशामना । इसी अप्रशस्तोपशामनाको यहां अधिकारप्राप्त बतलाया है । उपशामनाके पूर्वोक्त भेदोंके लिये तालिका देखिये उपशामना नामउपशामना स्थापनाउपशामना द्रव्यउपशामना भावउपशामना आगमद्रव्य उपशामना नोआगमद्रव्यउपशामना आगमभावउपशामना नोआगमभाव उपशामना कर्मद्रव्यउपशामना नोकर्मद्रव्य उपशामना करणोपशामना अकरणोपशामना ( अनुदीर्णोपशामना इसका ही नामान्तर है ) देशकरणोपशामना (अगुणोपशामना और अप्रशस्तोपशामना इसीके नामान्तर हैं) सर्वकरणोपशामना (गुणोपशामना और प्रशस्तोपशामना इसीके नामान्तर हैं) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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