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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा ( २०९ थिर-सुभ-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-जसकित्ति-णिमिणुच्चागोदाणं उक्कस्साणुभागुदीरणंतरं जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण छम्मासा। अणुक्कस्साए पत्थि अंतरं । एवं तित्थयरस्स । णवरि उक्कस्साणु० उदो० उक्कस्सेण वासपुधत्तं । थावर-सुहुमेइंदियजादि-साहारणसरीरपंचंतराइयाणं उपकस्साणुक्कस्सअणुभागुदीरणंतरं पत्थि । एवमुक्कस्संतरं समत्तं । ___ एत्तो जहण्णअणुभागउदीरणंतरं । तं जहा- आभिणिबोहियणाणावरणीय-सुदणाणावरणीय-मणपज्जवणाणावरणीय-चक्खुदंसणावरणीयाणं जहण्णाणुभागुदीरणंतरं जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जाणि वस्साणि । ओहिणाणावरणीय-ओहिदसणावरणीयाणं जहण्णाणुभागुदीरणंतरं पि जह० एगसमओ, उक्क०संखेज्जाणि वस्ताणि। केवलणाणावरणीय-केवलदसणावरणीय--लोहसंजलण--अप्पसत्थवण्ण-गंध-रस-फासअथिर-असुह-पंचंतराइयाणं जहण्णाणुभागुदीरणंतरं जह० एगसमओ उक्क० छम्मासा। णिद्दा-पयलाणं जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जवस्साणि । सम्मत्तस्स जह० एगसम। उक्क० छम्मासा । इत्थि-णवंसयवेदाणं जह० एगसमओ, उक्क० संखे० वस्साणि । स्पर्श, अगुरुलघु, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीति, निर्माण और ऊंचगोत्र; इनकी उत्कृष्ट अनभागउदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे छह मास प्रमाण होता है। इनकी अनुत्कृष्ट उदीरणाका अन्तर नहीं होता। इसी प्रकारसे तीर्थकर प्रकृतिके सम्बन्धमें भी कहना चाहिए । विशेष इतना है कि उसकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणाका अन्तर उत्कर्षसे वर्षपृथक्त्व मात्र होता है। स्थावर, सूक्ष्म, एकेन्द्रियजाति, साधारणशरीर और पांच अन्तराय; इनकी उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणाका अन्तर नहीं होता । इस प्रकार उत्कृष्ट अन्तर समाप्त हुआ। यहां जघन्य अनुभागउदीरणाका अन्तर कहा जाता है । यथा- आभिनिबोधिकज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण और चक्षुदर्शनावरणकी जघन्य अनुभागउदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात वर्ष मात्र होता है । अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी जघन्य अनुभागउदीरणाका अन्तर भी जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात वर्ष मात्र होता है । केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, संज्वलनलोभ, अप्रशस्त वर्ण गंध, रसा व स्पर्श, अस्थिर, अशुभ, और पांच अन्तरायकी जघन्य अनुभागउदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे छह मास प्रमाण होता है । निद्रा और प्रचलाकी जघन्य उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात वर्ष मात्र होता है । सम्यक्त्व प्रकृतिकी उक्त उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे छह मास प्रमाण होता है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी उक्त उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात वर्ष मात्र होता है । पुरुषवेद और संज्वलन क्रोध, मान व मायाकी जघन्य अनुभागउदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और लोगा। अणुक्क० णत्थि अंतरं । णवरि सम्मा'म० णणक्क० जह० एगस., उक्क० पलिदो० असं० भागो । जयध. प्रे. ब. पू. ५४८८. 0 अ-काप्रत्योः 'जद' इति पाठः।.ताप्रतौ संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि' इति पाम:। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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