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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा ( १९५ सादासादाणं जहण्णाणुभागस्स जह० एगसमओ, उक्क० चत्तारिसमया। अजहण्ण जह० एगसमओ। उक्क० सादस्स छम्मासा, असादस्स तेत्तीसं सागरोवमाणि अंतोमुहुत्तब्भहियाणि । मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जह० केवचिरं०? जहण्णुक्क० एगसमओ। अजहण्ण० मिच्छत्तस्स तिण्णिभंगा । तत्थ जो सो सादिओ सपज्जवसिदो तस्स जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० उवड्ढपोग्गलपरियट्टं। सम्मत्तस्स जह० अंत्तोमुहुत्तं, उक्क० छावट्ठिसागरोवमाणि समयाहियावलियूणाणि । सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णुक्क० अतोमुहुत्तं । सोलसणं कसायाणं जहण्णाणुभागउदीरणा* केवचिरं? जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। अजहण्ण० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । णवणं णोकसायाणं जहण्णाणुभागुदीरणा केवचिरं०? जहण्णुक्क० एगसमओ। अजहण्ण० हस्स-रदीणं जह० एगसमओ, उक्क० छम्मासा । अरदि-सोगाणं जह० एगसमओ, उक्क० तेत्तीसं सागरोत्रमाणि सादिरेयाणि । भय-दुगुंछाणं जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । णqसयवेदस्स जह० एयसमओ, उक्क० असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । इत्थिवेदस्स जह० एगसमओ, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं । पुरिसवेदस्स जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । भागकी उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय मात्र है। उनकी अजघन्य अनुभागउदीरणाका काल जघन्यसे एक समय है। उत्कर्षसे वह सातावेदनीयका छह मास और असातावेदनीयका अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण है। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभागउदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होती है । मिथ्यात्वकी जघन्य उदीरणाके विषयमें ( अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित व सादि-सपर्यवसित ये ) तीन भंग हैं। उनमें जो सादि-सपर्यवसित भंग है उसका काल जघन्यसे अन्तर्महुर्त व उत्कषसे उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है। सम्यक्त्वकी अजघन्य उदीरणा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त व उत्कर्षसे एक समय अधिक आवलीसे हीन छयासठ सागरोपम काल तक होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी अजघन्य उदीरणा जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहुर्त काल तक होती है। सोलह कषायोंकी जघन्य अनुभागउदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होती है। उनकी अजघन्य उदीरणा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहुर्त काल तक होती है। नौ नोकषायोंको जघन्य अनुभागउदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होती है । अजघन्य उदीरणा हास्य व रतिकी जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे छह मास, अरति व शोककी जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे साधिक तेतीस सागरोपम, भय व जुगुप्साकी जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त, नपुंसकवेदकी जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन, स्त्रीवेदकी जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे पल्योपमशतपृथक्त्व, तथा पुरुषवेदकी जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त व उत्कर्षसे सागरोपमशतपृथक्त्व काल तक होती है । * मप्रो 'जहण्णाणुभागउदीरणा अणुभागउदीरणा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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