SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६ ) छक्खंडागमे संतकम्म आउआणं जहण्णाणुभागुदीरणा केवचिरं ? जह० एगसमओ, उक्कस्सेण चत्तारिसमया। अजहण्ण० जह० एगसमओ, उक्क० णिरय-देवाउआणं तेत्तीसं सागरोवमाणि आवलियूणाणि, तिरिक्ख-मणुस्साउआणं तिणि पलिदोवमाणि आवलियणाणि। चदुण्णं गदीणं जहण्णाणुभागुदीरणा केवचिरं ? जह० एगसमओ, उक्क० चत्तारिलमया । अजहण्ण० जहण्णण एगसमओ। उक्कस्सेण णिरय-देवगईणं तेत्तीसं सागरोवमाणि, मणुसगदीए तिणिपलिदोवमाणि पुव्वकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि, तिरिक्खगइए असंखेज्जा लोगा । ओरालिय-वेउव्विय-आहारसरीराणं जहण्णाणुभागउदीरणा केवचिरं०? जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। अजहण्ण० ओरालियसरीरस्स जह० एगसमओ, उक्क० अंगुलस्स असंखे० भागो; वेउम्विय जह० एगसमओ, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि; आहारसरीरस्स जहण्णुक्कस्सेणx अंतोमुहत्तं । तेजा-कम्मइयसरीराणं जहण्णाणुभागउदीरणा केवचिरं? जह० एगसमओ, उक्क० बे समया। अजहण्ण. जह० एगसमओ, उक्क० असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा। तिण्णिअंगोवंग-पंचसरीरबंधण-पंचसरीरसंघादाणं सग-सरीरभंगो। आयु कर्मोकी जघन्य अनुभागउदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय तक होती है। उनकी अजघन्य अनुभागउदारणा जघन्यसे एक समय होती है। उत्कर्षसे वह नारकायु व देवायुकी एक आवलीसे कम तेतीस सागरोपम, तथा तिर्यंचायु और मनुष्यायुकी एक आवलीसे कम तीन पल्योपम प्रमाण होती है। चार गति नामकर्मोंकी जघन्य अनुभागउदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय तक होती है। उनकी अजघन्य अनुभागउदीरणा जघन्यसे एक समय होती है। उत्कर्षसे वह नरकगति व देवगतिकी तेतीस सागरोपम, मनुष्यगतिकी पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम, तथा तिर्यंचगतिकी असंख्यात लोक प्रमाण काल तक होती है। औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीरकी जघन्य अनुभागउदीरणा कितने काल तक होती है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होती है। अजघन्य अनुभागउदीरणा औदारिकशरीरकी जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे अंगुलके असंख्यातवें भाग, वैक्रियिकशरीरकी जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे साधिक तेतीस सागरोपम, तथा आहारशरीरकी जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहर्त काल तक होती है । तैजस व कार्मण शरीरकी जघन्य अनुभागउदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय तक होती है। उनकी अजघन्य अनभागउवीरणा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र काल तक होती है। तीन अंगोपांग, पांच शरीरबंधन और पांच शरीरसंघात प्रकृतियोंकी उक्त उदीरणाकी प्ररूपणा अपने अपने शरीरके समान है। विशेष इतना है कि औदारिकशरीरअंगोपांगकी अजघन्य अनुभागउदीरणाका ४ प्रतिषु 'आहारसरीरस्स जह• अणु (अ. जहण्णुक्क० ) केवचिरं ? जह० उक्क० एगसमओ। अजह० जहणकस्सेग' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy