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________________ १९४) छक्खंडागमे संतकम्म परघाद-आदाव-उज्जोव-उस्सास--पसत्थापसत्थविहायगइ--तस-थावर--बादर-सुहुमपज्जत्तापज्जत्त-पत्तेय-साहारण-दुस्सर-अजसकित्तीणमुक्कस्साणुभागउदीरणा केवचिरं? जहण्णण एगससओ, उक्कस्सेण बेसमया। अणुक्क० जहण्णण एयसमओ, उक्कस्सेण जच्चिरं पयडिउदीरणा तच्चिरं कालं । जसगित्ति-सुभग-सुस्सर-आदेज्जउच्चागोदाणं उक्क० अणुभागुदीरणा केवचिरं०? जहण्णुक्क० एगसमओ। अणुक्कस्सं जच्चिरं पयडिउदीरणा तच्चिरं कालं । तित्थयरणामाए उक्कस्सअणुभागउदीरणा केवचिरं०? जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। अणुक्कस्सा० केवचिरं०? जह० वासपुधत्तं, उक्कस्सेण पुचकोडी देसूणा । एवमुक्कस्सअणुभागउदीरणाए कालो समतो। एत्तो जहण्णाणुभागउदीरणकालो वुच्चदे। तं जहा- पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-पंचंतराइयाणं जहण्णागुभागउदीरणा जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। अजहण्णाणुभागउदीरणा अणादिओ अपज्जवसिदो अणादिओ सपज्जवसिदो वा । णिद्दापयलाणं जहण्णाणुभागुदोरणा जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । अजहण्णउदीरणाए जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । णिद्दाणिद्दा-पयलापयला-थोणगिद्धोणं जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया। अजहण्ण० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण दस्वर और अयशकीर्तिकी उत्कृष्ट अनभागउदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय होती है। उनकी अनत्कृष्ट अनभाग उदीरणा जघन्यसे एकसमय और उत्कर्षसे जितने काल उनकी प्रकृतिउदीरणा होती है उतने काल होती है। यशकीर्ति, सुभग सुस्वर, आदेय और ऊंच गोत्रकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होती है। उनकी अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणा जितने काल प्रकृति उदीरणा होती है उतने काल होती है। तीर्थकर नामकर्मकी उत्कृष्ट अनुभागउदी रणा कितने काल होती है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होती है। उसकी अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्यसे वर्षपृथक्त्व व उत्कर्षसे कुछ कम पूर्वकोटि काल तक होती है। इस प्रकार उत्कृष्ट अनुभागउदीरणाका काल समाप्त हआ। यहां जघन्य अनुभाग उदीरणाका काल कहा जाता है। वह इस प्रकार है- पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तराय कर्मोकी जघन्य अनुभागउदीरणा जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होती है। उनकी अजघन्य अनुभागउदीरणाका काल अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित भी है। निद्रा और प्रचलाकी जघन्य अनुभागउदीरणा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल तक होती है। उनकी अजघन्य अनुभागउदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है। निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धिकी जघन्य उदीरणा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय होती है । उनकी अजघन्य उदीरणा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त तक होती है। साता व असाता वेदनीयके जघन्य अनु www.jainelibrary.org Jain Education international For Private & Personal Use Only
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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