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________________ उवक्क माणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा अणुक्क सुक्कस्सस्स तिष्णि पलिदोवमाणि पुव्वको डिपुधत्तेणब्भहियाणि । छसंठाण - छसंघडणाणं च उक्क० अणुभागुदीरणा केवचिरं० ? जहणेण एगसमओ, उक्क० बेसमया । अणुक्क० जह० एगसमओ । उक्क० समचउरससंठा णस्स बे-छावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि, इंडसंठाणस्स अंगुलस्स असंखे० भागो साणं संठाणाणं पुव्वको डिपुधत्तं । वज्जरिसहवइरणारायणसंघडणस्स तिष्णि पलिदोवमाणि पुव्वको डिपुधत्तेणब्भहियाणि, सेसाणं संघडणाणं पुव्वकोडिपुधत्तं । पसत्थवण्ण-गंधरस- णिङ्घण्णाणं तेजा - कम्मइयसरीरभंगो । अप्पसत्थवण्ण-गंध-रस-सीद ल्हुक्खकक्खड-गरुआणं णाणावरणभंगो। मउअ - लहुआणमुक्कस्सअणुभागउदीरणा केवचिरं० ? जह० एगसमओ, उक्कस्सेण बेसमया । अणुक्क० अणादि - अपज्जवसिदा अणादिसपज्जवसिदा सादि सपज्जवसिदा । तत्थ सादि-सपज्जवसिदा जहणेण एगसमओ' उक्क ० अद्धपोग्गलपरियटं । (१९३ चदुण्णमाणुपुव्वीणमुक्कस्सअणुभागुदीरणा केवचिरं० ? जहष्णुक्क० एगसमओ । अणुक्क० अणुभागुदीरणा केवचिरं० ? जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया । णवरि तिरिक्खाणुपुव्वीए तिष्णिसमया । अधवा तिरिक्खाणुपुथ्वीए चत्तारिसमया सेसाणं तिणिसमया । अगुरुअलहुअ-थिर- सुभ- णिमिणणामाणं तेजा - कम्मइयभंगो । उवघाद प्रमाण है । छह संस्थानों और छह संहननोंकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा कितने काल तक होती है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय तक होती है । उनकी अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणा जघन्यसे एक समय होती है । उत्कर्ष से वह समचतुरस्र संस्थानकी साधिक दो छ्यासठ सागरोपम, हुण्डकसंस्थानकी अंगुलके असंख्यातवें भाग, तथा शेष संस्थानों की पूर्वकोटिपृथक्त्व काल तक होती है । उक्त उदीरणा वज्रर्षभवज्रनाराचसंहननकी पूर्वकोटिप्थक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम तथा शेष संहननोंकी पूर्वकोटिपृथक्त्व काल तक होती है । प्रशस्त वर्ण, गन्ध, उसकी तथा स्निग्ध और उष्ण स्पर्शकी प्ररूपणा तैजस व कार्मण शरीरके समान है । अप्रशस्त वर्ण, गन्ध, रस तथा शीत, रूक्ष, कर्कश व गुरु स्पर्श नामकर्मोकी प्ररूपणा ज्ञानावरणके समान है । मृदु और लघुकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से दो समय तक होती है। उनकी अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणाका काल अनादिअपर्यवसित, अनादि सपर्यवसित और सादि - सपर्यवसित भी है । उनमें सादि सपर्यवसितका प्रमाण जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे कुछ कम अर्ध पुद्गल - परिवर्तन है । चार आनुपूर्वियोंकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा कितने काल होती है। वह जघन्य व उत्कर्ष से एक समय होती है । उनकी अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणा कितने काल होती है । वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से दो समय तक होती है। विशेष इतना है कि तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वीकी उक्त उदीरणा तीन समय तक होती है । अथवा तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वीकी उक्त उदीरणा काल चार समय और शेष आनुपूर्वियोंका तीन समय है। अगुरुलघु, स्थिर, शुभ और निर्माण नामकर्मकी प्ररूपणा तैजस व कार्मण शरीरके समान है । उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, प्रशस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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