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________________ १९२ ) छक्खंडागमे संतकम्मं मणु साउआणमुक्कस्सअणुभागुदीरणा जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया तिर्णण चत्तारि समया वा । अणुक्क० जह० एगसमओ, उक्क० तिष्ण पलिदोवमाणि आवलियूणाणि । चदुष्णं पि गईणमुक्कस्समणुभागुदीरणा जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया । अणुक्क० जह० एगसमओ, उक्क० णिरय देवगईणं तेत्तीसं सागरोवमाणि, मणुसगईए तिष्णि पलिदोवमाणि पुव्वको डिपुधत्तेण भहियाणि, तिरिक्खगईए असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । पंचणं जादोणमुक्क० केवचिरं० ? जह० एगसमओ, उक्क० अणुक्क० जह० एगसमओ, उक्क० सग-सगुक्क सद्विदीओ । ओरालिय-वेउव्वियआहार-सरीराणमुक्कस्सअणुभागुदीरणा० केवचिरं० ? जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण बेसमया । अणुक्क० जह० एगसमओ, उक्क० ओरालियसरीरस्स अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, वे उव्वियसरीरस्स तेत्तीस सागरोवमाणि सादिरेयाणि आहारसरीरस्स अंतोमुत्तं । तेजा - कम्मइयाणमुक्कस्स अणुभागुदीरणा केवचिरं० ? जहण्णुक्क० एगसमओ । अणुक्क० अणादि-अपज्जवसिदा अणादि सपज्जवसिदा वा । तिण्णि अंगोवंगपंचसरीरबंधण - संघादाणं च सग-सगसरीरभंगो । णवरि ओरालियअंगोवंग ० कम तेतीस सागरोपम प्रमाण होती है । तिर्यचायु और मनुष्यायुकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से दो समय अथवा तीन चार समय होती है । इनकी अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक आवलीसे कम तीन पल्योपम प्रमाण होती है । चारों गति नामकर्मोंकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय मात्र होती है । इनकी अनुत्कृष्ट उदीरणा जघन्य से एक समय होती है । उत्कर्ष से वह नरक व देवगतिकी तेतीस सागरोपम काल, मनुष्यगतिकी पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम, तथा तिर्यंचगतिकी असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होती है । पांच जातिनामकर्मोंकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय होती है । उनकी अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण होती है । औदारिक, वैक्रियिक और आहारकशरीरकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से दो समय होती है । उनकी अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणा जघन्यसे एक समय होती हैं । उत्कर्षसे वह औदारिकशरीरकी अंगुलके असंख्यातवें भाग, वैक्रियिकशरीर की साधिक तेतीस सागरोपम, तथा आहारकशरीरकी अन्तर्मुहूर्त काल तक होती है। तेजस व कार्मण शरीरकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा कितने काल होती है ? व जघन्य व उत्कर्ष से एक समय होती है । उनकी अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अनादि-अपर्यवसित अथवा अनादि - सपर्यवसित होती है। तीन अंगोपांग, पांच शरीरबन्धन और पांच संघात नामकर्मोंकी प्ररूपणा अपने अपने शरीरके समान है । विशेष इतना है कि औदारिकशरी रांगोपांगकी अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणाका काल उत्कर्षसे पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पत्योपम XXX ताप्रती Jain Education International ( अणुक्क० )' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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