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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा ( १९१ असंखेज्जा लोगा। दसणावरणपंचयस्स उक्क० अणुभागु० जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया । अणुक्क० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं ।। सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्साणुभाग० जहण्णुक्क० एगसमओ । अणुक्क० जह० अंतोमुहुत्तं । उक्क० सम्मामिच्छ० अंतोमु० सम्मत्त० छावट्ठिसागरोवमाणि आवलियूणाणि । सादासाद-सोलसकसाय-णवणोकसायाणमुक्कस्सअणुभागुदीरणा केवचिरं कालादो होदि? जहण्णण एगसमओ, उक्क० बेसमया। अणुक्क० अणुभागउदीरणा साद-हस्स-रदीणं जह० एगसमओ, उक्क० छम्मासा। असाद-अरदि-सोगाणं जह० एगसमओ, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि । सोलसकसाय-भय-दुगुंछाणं जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहत्तं । णवंसयवेदस्स जह० एगसमओ, उक्क० असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । पुरिसवेदस्स जह० एगसमओ, उक० सागरोवमसदपुधत्तं । इत्थिवेदस्स जह० एगसमओ, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं। णिरयाउ-देवाउआणमुक्कस्सअणुभागउदीरणा जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया। अणुक्क० जह० एगसमओ, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि आवलियूणाणि । तिरिक्ख असंख्यात लोक प्रमाण है। निद्रा आदि पांच दर्शनावरण प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय मात्र है। उनकी अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्का सम्यक्त्व और सम्पग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणाका काल जघन्य व उत्कर्षसे एक समय प्रमाण है। उनकी अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणाका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । उत्कर्ष वह सम्यग्मिथ्यात्वका अन्तर्मुहूर्त और सम्यक्त्वका एक आवलीसे कम छयासठ सागरोपम प्रमाण है। साता व असाता वेदनीय, सोलह कषाय और नौ नोकषाय ; इनके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा कितने काल होती है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय तक होती है । अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणाका काल सातावेदनीय, हास्य व रतिका जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे छह मास; असातावेदनीय, अरति और शोकका जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे साधिक तेतीस सागरोपम; सोलह कषाय, भय व जुगुप्साका जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त ; नपुंसकवेदका जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन; पुरुषवेदका जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे सागरोपमशतपृथक्त्व; तथा स्त्रीवेदका जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे पल्योपमशतपृथक्त्व प्रमाण है । ___ नारकाय व देवायुकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय होती है। इनकी अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक आवलीसे ताप्रतौ ' अगुकक० (भा० )' इति पाठः। ताप्रतौ ' एगसमओ ......।' इति पाठः । • सम्पत्तस्स उक्कस्साणभागुदीरगो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णुककस्से ग एगसमओ। अणुक्कस्साणभागउदौरगो केवचिरं कालादोहोदि? जहण्णेण अंतोमुहतं। उक्स्से ण छावट्रिसागरोवमाणि आवलियणा'ण । सम्मा मच्छ तस्स उकास्साणु भागउदीरगो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णुककस्सेण एयसमयो । अणुक्कस्सा णु मागुदीरगो केवचिरं कालादो होदि ? जहणगुककस्सेण अंतोमुहुसं। क. पा. ( चू. सू.) प्र.ब.पृ. ५४३५. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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