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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा ( १८९ आदावणामाए जह० कस्स? बादरपुढविजीवस्स जहणियाए पज्जत्तीए उववण्णस्स सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदपढमसमए वट्टमाणस्स। उज्जोवणामाए आदावभंगो। उस्सासणामाए जह० कस्स ? अण्णदरस्स देवस्स रइयस्स एइंदिय-बेइंदिय-तीइंदियचरिदिय-पंचिदियस्स वा। पसत्थापसत्थविहायगदीणं जह० कस्स? अण्णदरस्स तदुदइल्लस्स । तस-थावर-बादर-सुहुम-पज्जत्तापज्जत्ताणं जह० कस्स? एदासि पयडीयं जो वेदओ सो सम्वो पाओग्गो जहण्णाणुभागउदीरणमुदीरे, । पत्तेयसरीरणामाए जह० कस्स? सुहमस्स जहणियाए अपज्जत्तणिवत्तीए उववण्णस्स पढमसमयआहार-पढमसमयतब्भवत्थस्स। साहारणसरीरणामाए जह० कस्स? सुहुमस्स पढमसमयआहारयस्स उक्कस्सियाए पज्जत्तणिव्वत्तीए उववण्णस्स । सुभग-दुभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-अणा देज्ज-जसगित्ति-अजसगित्ति-णीचुच्चागोदाणं जह० कस्स? एदासि पयडीणं जो वेदओ सो सव्वो पाओग्गो जहणियअणुभागउदीरणमुदीरे, । तित्थयरणामाए जह० को होदि? पढमसमयकेवलिप्पहुडि जाव केवलसमुग्धादस्स चरिमसमयअणावज्जिदगो त्ति ताव जहण्णाणुभागउदीरओ।पंचण्णमंतराइयाणं जह० कस्स ? समयाहियावलिय आतप नामकर्मकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह जघन्य पर्याप्तिसे उत्पन्न हुए बादर पृथिवीकायिक जीवके शरीरपर्याष्तिसे पर्याप्त होनेके प्रथम समयमें वर्तमान होनेपर होती है। उद्योत नामकर्मकी प्ररूपणा आतप नामकर्मके समान है। उच्छ्वास नामकर्मकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह अन्यतर देव, नारकी अथवा एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व पंचेन्द्रियके होती है। प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगतिकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह उनके उदयसे संयुक्त अन्यतर जीवकें होती है। त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त और अपर्याप्तकी जघन्य उदीरणा किसके होती है? जो जीव इन प्रकृतियोंके वेदक हैं वे सब उनकी जघन्य अनुभागउदीरणा करनेके योग्य होते हैं। प्रत्येकशरीर नामकर्मकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह जघन्य अपर्याप्त निर्वृत्तिसे उत्पन्न हुए प्रथम समयवर्ती आहारक और प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ सूक्ष्म जीवके होती है । साधारणशरीर नामकर्मकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह उत्कृष्ट पर्याप्त निर्वत्तिसे उत्पन्न होकर प्रथम समयवर्ती आहारक हुए सूक्ष्म जीवके होती है । सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशकीर्ति, अयशकीति, नीचगोत्र और ऊंचगोत्र ; इनकी जघन्य उदीरणा किसके होती है? जो इन प्रकृतियोंके वेदक हैं वे सब उनकी जघन्य अनुभागउदीरणा करनेके लिये योग्य होते हैं। तीर्थकर नामकर्मकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? प्रथम समयवर्ती केवलीसे लेकर केवलसमुद्घातके पूर्व अनावजितकरण अवस्थाके अन्तिम समय तक उसकी जघन्य अनुभागउदीरणा होती है। पांच अन्तराय कर्मोंकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? छद्मस्थ अवस्थामें एक तथा आतपोद्योतनाम्नोस्तद्योग्यः पृथिवीकायिकः शरीरपर्याप्या पर्याप्तः प्रथमसमये वर्तमानः संक्लिष्टो जघन्यानुभागोदीरकः । क. प्र. (म. टीका) ४, ७७.४ प्रतिषु 'अजहण्णाणुभागउदीरओ' इति पाठः। जा नाउज्जियकरणं तित्थयरस्स xxx। क. प्र. ४, ७८. ज ति- आयोजिकाकरणं नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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