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________________ . १८८) छक्खंडागमे संतकम्म णियत्तमाणस्स. । लहुअ-मउआणं जहण्णाणुभागुदीरणा कस्स? सण्णिस्स अणाहारययस्स तप्पाओग्गविसुद्धस्स+। णिरयाणुपुग्विणामाए जहण्णाणुभागुदीरणा कस्स ? णेरइयस्स अण्णदरिस्से पुढवीए वट्टमाणस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स दुसमयतब्भवत्थस्स वा।तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुव्वीणामाए जहण्णाणुभागुदीरणा कस्स? अण्णदरस्स तिरिक्खस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स दुसमयतन्भवत्थस्स तिसमयतब्भवत्थस्स वा। मणुसगइपाओग्गाणुपुवीणामाए जहण्णाणुभागुदीरणा कस्स? अण्णदरस्स मणुस्सस्स पढमविग्गहे बिदियविग्गहे वा वट्टमाणस्स? देवाणुपुवीणामाए जहण्णाणुभागुदीरणा कस्स? अण्णदरस्स दसवस्ससहस्सियस्स वा तेत्तीसं सागरोवमियस्सर वा। अगुरुअलहुअ-थिर-सुभ-णिमिणणामाए जहण्णाणुभागुदीरणा कस्स? उकक्स्ससंकिलिट्ठस्स । अथिर-असुहाणं जहण्णाणुभागुदीरणा कस्स? सजोगिचरिमसमए । उक्घादणामाए जह० कस्स? सुहमेइंदियस्स उक्कस्सियाए पज्जत्तणिवत्तीए उववण्णस्स पढमसमयआहार-पढमसमयतब्भवत्थस्स*। परघादणामाए जह० कस्स? सुहमस्स जहणियाए पज्जत्तणिवत्तीए वट्टमाणस्स पढमसमयपज्जत्तयस्स। केवलीके उससे पीछे हटनेकी अवस्थामें होती है। लघु और मृदुकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त संज्ञी अनाहारक जीवके होती है । नारकानुपूर्वी नामकर्मकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह अन्यतर पृथिवीमें वर्तमान नारकीके तद्भवस्थ होने के प्रथम समयमें अथवा उसके द्वितीय समयमें होती है। तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ, द्वितीय समयवर्ती तद्भवस्थ, अथवा तृतीय समयवर्ती तद्भवस्थ अन्यतर तिर्यंच जीवके होती है। मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह प्रथम विग्रह अथवा द्वितीय विग्रहमें वर्तमान अन्यतर मनुष्यके होती है । देवानुपूर्वी नामकर्मकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती हैं ? वह दस हजार वर्षकी आयुवाले अथवा तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाले अन्यतर देवके होती है । ___ अगुरुलघु, स्थिर, शुभ और निर्माण नामकर्मकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है? वह उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुए जीवके होती है । अस्थिर और अशुभकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह सयोग केवलीके अन्तिम समयमें होती है। उपघात नामकर्मकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह उत्कृष्ट पर्याप्त निर्वृत्तिसे उत्पन्न हुए प्रथम समयवर्ती आहारक और प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके होती है। परघात नामकर्मकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह जघन्य पर्याप्त निर्वत्तिमें वर्तमान सूक्ष्म जीवके पर्याप्त होनेके प्रथम समयमें होती है। कक्खड-गरूण मंते (थे) नियत्तमाणस्स केवलिणो॥ क. प्र. ४, ७८. .xxx मउय । सन्निविसुद्धाणाहारगस्सxxx ॥ क.प्र. ४, ७६. 3 अप्रतो' सागरोवमेयस्स', काप्रती 'सागरोवमाणि', ताप्रती 'सागरोवमाणियस्स'। * हंडवघायाणमवि सुहमो॥क. प्र.४,७५. तथा सूक्ष्म केन्द्रियः सुदीर्घायुःस्थिक आहारकः प्रयमसमये हुंडोपघातनाम्नोर्जघन्यानुभागोदीरकः । म. टीका. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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