SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२ ) छक्खंडागमे संतकम्म होणेण वा होंति त्ति दट्टव्वाणि । एवमुक्कस्साणुभागुदीरणा समत्ता। जहण्णयं सामित्तं उच्चदे । तं जहा--आभिणिबोहिय-सुदणाणावरणीय-चक्ख अचक्खुदंसणावरणीयाणं जहणिया अणुभागउदीरणा कस्स? चोद्दसपुब्वियस्स समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थस्स । ओहिणाण-ओहिदसणावरणाणं जहणिया उदीरणा कस्स ? परमोहिस्स समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थस्स । मणपज्जवणाणावरणीयस्स जहणिया उदीरणा कस्स ? विउलमदिस्स समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थस्स* । केवलणाण-केवलदसणावरणीयाणं जहणिया कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थस्स । णिद्दा-पयलाणं जहणिया कस्स ? उवसंतकसायवीयरागछदुमत्थस्सल । णिहाणिद्दा-पयला-पयला-थोणगिद्धीणं जहणिया उदीरणा कस्स ? पमत्तसंजदस्स तप्पाओग्गविसुद्धस्सक । सादासादाणं जहणिया उदीरणा कस्स? अण्णदरो रइयो तिरिक्खो मणुस्सो देवो वा उक्कस्स-मज्झिम-जहण्णासु दिदीसु वट्टमाणो मज्झिमपरिणामो* । पतित गुणहानिस्वरूप सत्कर्मके साथ होते हैं, ऐसा जानना चाहिये । इस प्रकार उत्कृष्ट-अनुभागउदीरणा समाप्त हुई। जघन्य स्वामित्वकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है--आभिनिबोधिकज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावण और अचक्षुदर्शनावरणकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह चौदह पूर्वधारीके छद्मस्थ अवस्थाके अन्तसमयमें एक समय अधिक आवली मात्र शेष रहनेपर होती है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी जघन्य उदीरणा किसके होती हैं ? वह परमावधिज्ञानीके छद्मस्थ अवस्थाके अन्तसमयमें एक समय अधिक आवली मात्र शेष रहनेपर होती है। मनःपर्ययज्ञानावरणकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह विपुलमतिमन:पर्ययज्ञानीके छद्मस्थ अवस्थाके अन्तसमयमें एक समय अधिक आवली मात्र शेष रहनेपर होती है। केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरणकी जघन्य उदोरणा किसके होती है ? उनकी जघन्य उदीरणा छद्मस्थकालमें एक समय अधिक आवली मात्र शेष रहनेपर होती है। निद्रा और प्रचलाकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह उपशान्तकषाय वीतराग छद्मस्थके होती है । निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धिकी जघन्य उद्रीरणा किसके होती है ? वह तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त हुए प्रमत्तसंयतके होती है । साता व असाता वेदनीयकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है? जो अन्यतर नारकी, तिर्यंच, मनुष्य अथवा देव उत्कृष्ट, मध्यम या जघन्य स्थितिमें वर्तमान होकर मध्यम परिणामसे युक्त होता है उसके * सुयकेवलिणो मइ-सुय-अचक्खु चक्खणदीरणा मंदा। विपुल-परमोहिगाणं मणणाणोहीदुगस्सावि ॥ क प्र. ४, ६९. Bखवणाए विग्ध-केवल-संजलेणाण य सनोकसायाणं । सय-सयउदीरणंते निद्दा-पयलाणमुवसंते ।। क. प्र. ७०. क्षपणायोत्थितस्य पंचविधान्तराय-केवलज्ञानावरण-केवलदर्शनावरण-संज्वलनचतुष्टय-नवनोकपायरूपाणं विंशतिप्रकृतीनां स्व-स्वोदीरणापर्यवसाने जघन्यानुभागोदीरणा । तत्र पंचविधान्तराय-केवलज्ञानावरण-केवलदर्शनावरणानां क्षीणकषायस्य xxx स्व-स्वोदीरणापर्यवमाने । तथा निद्रा-प्रचलायोरुपशान्तमोहे जधन्यानुभागोदीरणा लभ्यते । (म.टीका) णिहाणिद्दाईणं पमत्तविरए विसुज्झमाणम्मि । क.प्र. ४,७१. ४ काप्रती 'अण्णदरा रइया तिरिक्खमणत्सो', ताप्रतौ 'अण्णदरणेरइयो तिरिक्खो मणुस्सो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy