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छक्खंडागमे संतकम्म होणेण वा होंति त्ति दट्टव्वाणि । एवमुक्कस्साणुभागुदीरणा समत्ता।
जहण्णयं सामित्तं उच्चदे । तं जहा--आभिणिबोहिय-सुदणाणावरणीय-चक्ख अचक्खुदंसणावरणीयाणं जहणिया अणुभागउदीरणा कस्स? चोद्दसपुब्वियस्स समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थस्स । ओहिणाण-ओहिदसणावरणाणं जहणिया उदीरणा कस्स ? परमोहिस्स समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थस्स । मणपज्जवणाणावरणीयस्स जहणिया उदीरणा कस्स ? विउलमदिस्स समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थस्स* । केवलणाण-केवलदसणावरणीयाणं जहणिया कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थस्स । णिद्दा-पयलाणं जहणिया कस्स ? उवसंतकसायवीयरागछदुमत्थस्सल । णिहाणिद्दा-पयला-पयला-थोणगिद्धीणं जहणिया उदीरणा कस्स ? पमत्तसंजदस्स तप्पाओग्गविसुद्धस्सक । सादासादाणं जहणिया उदीरणा कस्स? अण्णदरो रइयो तिरिक्खो मणुस्सो देवो वा उक्कस्स-मज्झिम-जहण्णासु दिदीसु वट्टमाणो मज्झिमपरिणामो* ।
पतित गुणहानिस्वरूप सत्कर्मके साथ होते हैं, ऐसा जानना चाहिये । इस प्रकार उत्कृष्ट-अनुभागउदीरणा समाप्त हुई।
जघन्य स्वामित्वकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है--आभिनिबोधिकज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावण और अचक्षुदर्शनावरणकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह चौदह पूर्वधारीके छद्मस्थ अवस्थाके अन्तसमयमें एक समय अधिक आवली मात्र शेष रहनेपर होती है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी जघन्य उदीरणा किसके होती हैं ? वह परमावधिज्ञानीके छद्मस्थ अवस्थाके अन्तसमयमें एक समय अधिक आवली मात्र शेष रहनेपर होती है। मनःपर्ययज्ञानावरणकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह विपुलमतिमन:पर्ययज्ञानीके छद्मस्थ अवस्थाके अन्तसमयमें एक समय अधिक आवली मात्र शेष रहनेपर होती है। केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरणकी जघन्य उदोरणा किसके होती है ? उनकी जघन्य उदीरणा छद्मस्थकालमें एक समय अधिक आवली मात्र शेष रहनेपर होती है। निद्रा और प्रचलाकी जघन्य उदीरणा किसके होती है ? वह उपशान्तकषाय वीतराग छद्मस्थके होती है । निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धिकी जघन्य उद्रीरणा किसके होती है ? वह तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त हुए प्रमत्तसंयतके होती है । साता व असाता वेदनीयकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है? जो अन्यतर नारकी, तिर्यंच, मनुष्य अथवा देव उत्कृष्ट, मध्यम या जघन्य स्थितिमें वर्तमान होकर मध्यम परिणामसे युक्त होता है उसके
* सुयकेवलिणो मइ-सुय-अचक्खु चक्खणदीरणा मंदा। विपुल-परमोहिगाणं मणणाणोहीदुगस्सावि ॥ क प्र. ४, ६९. Bखवणाए विग्ध-केवल-संजलेणाण य सनोकसायाणं । सय-सयउदीरणंते निद्दा-पयलाणमुवसंते ।। क. प्र. ७०. क्षपणायोत्थितस्य पंचविधान्तराय-केवलज्ञानावरण-केवलदर्शनावरण-संज्वलनचतुष्टय-नवनोकपायरूपाणं विंशतिप्रकृतीनां स्व-स्वोदीरणापर्यवसाने जघन्यानुभागोदीरणा । तत्र पंचविधान्तराय-केवलज्ञानावरण-केवलदर्शनावरणानां क्षीणकषायस्य xxx स्व-स्वोदीरणापर्यवमाने । तथा निद्रा-प्रचलायोरुपशान्तमोहे जधन्यानुभागोदीरणा लभ्यते । (म.टीका) णिहाणिद्दाईणं पमत्तविरए विसुज्झमाणम्मि । क.प्र. ४,७१. ४ काप्रती 'अण्णदरा रइया तिरिक्खमणत्सो', ताप्रतौ 'अण्णदरणेरइयो तिरिक्खो मणुस्सो' इति पाठः ।
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