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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभाग उदीरणा ( १८१ अंतोमुहुत्तपज्जत्तयस्स* उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स । सुहुमणामाए कस्स ? जहणियाए पज्जत्तणिव्वत्तीए उववण्णस्स अंतोमुहुत्तपज्जत्तयस्स उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स । अपज्जत्तणामा कस्स ? मणुस्सस्स उक्कस्सियाए अपज्जत्तणिव्वत्तीए चरिमसमए उक्कस्ससंकिलेसं गदस्स । साहारणसरीरणामाए कस्स ? बादरणिगोदस्स जहण्णियाए पज्जत्तणिव्वत्तीए अंतोमुहुत्तं पज्जत्तयस्स उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स समचउरससंठाणस्स उक्कस्सिया उदीरणा कस्स ? संजदस्स आहारसरीरस्स अंतोमुहुत्तं पज्जत्तयस्स । सेसाणं हुंडसंठाणवज्जाणं संठाणाणं पंचणं संघडणाणं च उक्कस्सिया कस्स ? तिरिक्खस्स अट्ठवासियस्स अट्ठवासते वट्टमाणस्स । हुंडठाणस्स कस्स ? णेरइयस्स अगदी उबवण्णअंतोमुहुत्तं पज्जत्तयस्स* । पढमसंघडणस्स कस्स ? मणुसस्स तिपलिदोवमियरस अंतोमुहुत्तं पज्जत्तयदस्स । अंतराइयपंचयस्स अचक्खुदंसणभंगो । एदाणि सव्वाणि सामित्तानि अप्पप्पणो संतकम्मेण उक्कस्सेण वा छट्टाणगुण 1 तथा उत्कृष्टसंक्लेशको प्राप्त हुए अन्तमुहूर्तवर्ती पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय जीवके होती है । सूक्ष्म नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह जघन्य पर्याप्त निर्वृत्तिसे उत्पन्न तथा उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुए अन्तर्मुहूर्तवर्ती पर्याप्त सूक्ष्म जीवके होती है । अपर्याप्त नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह उत्कृष्ट अपर्याप्त निर्वृत्तिके चरम समय में उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुए मनुष्य होती है । साधारणशरीर नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह जघन्य पर्याप्त निर्वृत्तिसे अन्तर्मुहूर्तवर्ती पर्याप्त हुए उत्कृष्ट संक्लेश युक्त बादर निगोद जीवके होती है । समचतुरस्रसंस्थानकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह अन्तर्मुहूर्तवर्ती पर्याप्त हुए आहारशरीरी संयत जीवके होती है । हुण्डक संस्थानको छोड़कर शेष चार संस्थानोंकी तथा वज्रभनाराच संहननको छोडकर शेष पांच संहननोंकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह आठ वर्षोंके अन्तमें वर्तमान अष्टवर्षीय तिर्यंचके होती है । हुण्डकसंस्थानकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह उत्कृष्ट स्थिति के साथ उत्पन्न होकर अन्तर्मुहूर्तवर्ती पर्याप्त हुए नारकीके होती है । प्रथम संहननकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह तीन पल्योपमकी आयुवाले अंतर्मुहूर्तवर्ती पर्याप्त मनुष्य के होती है। पांच अन्तराय कर्मोकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणाकी प्ररूपणा अचक्षुदर्शनावरण के समान है । ये सब स्वामित्व अपने अपने उत्कृष्ट सत्कर्मके साथ अथवा षट्स्थान तथाऽ * ताप्रती 'अंतोमुद्दत्तं पज्जत्तयस्स ' इति पाठ: । D काप्रती 'समय' इति पाठ: । पर्याप्तनाम्नो मनुष्योऽपर्याप्तश्चरिमसमये वर्तमानः सर्वसंक्लिष्ट उत्कृष्टानभागोदीरणास्वामी । संज्ञितिर्यक्पंचेन्द्रियादपर्याप्तान्मनुष्योऽपर्याप्तोऽतिमं क्लिष्टतर इति मनुष्यप्रहणम् । क. प्र. ( मलय ) ४,६२. कक्खड - गुरु-संघयणा-त्थीपुम-संठाण - तिरियणामाणं । पंचिदिओ तिरिक्खो अट्टमवासटुवासाओ । क. प्र. ४, ६३. * गड-हुंडुवधायाणिट्ठखगइ णीयाण दुहचउक्कस्स । निरउक्कस्स-समत्ते असमत्ताए नरस्ते । क. प्र. ४, ६२. गति - नैरयिक उत्कृष्ट स्थतौ वर्तमानः सर्वाभिः पर्याप्तिभिः पर्याप्तः सर्वोत्कृष्ट सं क्लेशयुक्तो नरकगतिहुं■संस्थानोपघाताप्रशस्त विहायोगति - नीचैर्गोत्राणां 'दुहचउक्कस्स त्ति' दुर्भगचतुष्कस्य दुर्भग- दुःस्वरानादेयायश कीर्तिरूपस्य सर्वसंख्यया नवानां प्रकृतीनामुत्कृष्टानु भागोदीरणास्वामी । मलय. मणु-ओरालिय- वज्जरिसहाण मणुओ तिपल्लपज्जत्तो 1 क. प्र. ४, ६४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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