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________________ १८० ) छक्खंडागमे संतकम्म सागरोवमियस्स रइयस्स पज्जत्तस्स । परघाद-पसत्थविहायगइ-पत्तेयसरीराणं कस्स? संजदस्स आहारसरीरमुट्ठाविदस्स पज्जत्तस्स। आदावणामाए कस्स ? बावीसं वस्ससहस्साउअस्स पुढविकाइयपज्जत्तयस्स। उज्जोवणामाए कस्स? संजदस्त विउव्विदुत्तरसरीरस्स पति गयस्स। बीइंदिय-तीइंदिय-चरिदियजादिणामाणं कस्स ? जहण्णपज्जत्तणिवत्तीए* णिव्वत्तिदूण अंतोमुहुत्तपज्जत्तस्स * । एइंदियजादिणामाए कस्स? जहण्णपज्जत्तणिवत्तीए णिव्वत्तिय अंतोमुहुत्तपज्जत्तयस्स एइंदियस्स । पंचिदियजादि-उस्साससस-बादर-पज्जत्तणामाणं कस्स? देवस्स तेत्तीसं सागरोवमियस्स । अप्पसत्थविहायगइ-दुब्भग-दुस्सर-अणादेज्ज-अजसगित्ति-णीचागोदाणं कस्स ? रइयस्स तेत्तीसं सागरोवमियस्स पज्जत्तयस्स। अथिर-असुहणामाणं कस्स ? उक्कस्ससंकिलिट्रस्स । थावरणामाए कस्स? जहणियाए पज्जत्तणिवत्तीए उववण्णस्स बादरेइंदियस्स उपघात नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाले पर्याप्त नारकीके होती है। परघात, प्रशस्त विहायोगति और प्रत्येकशरीरकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह आहारकशरीरको उत्पन्न कर लेनेवाले संयत पर्याप्तके होती है। आतप नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह बाईस हजार वर्षकी आयुवाले पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवके होती है। उद्योत नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह उत्तर शरीरको विक्रिया करनेवाले संयत पर्याप्तके होती है । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, और चतुरिन्द्रिय जातिनामकर्मोकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? उनकी उत्कृष्ट उदीरणा जघन्य पर्याप्त निर्वृत्तिसे निवृत्त होकर अन्तर्मुहुर्तवर्ती पर्याप्त हुए उन उन जीवोंके होती है। एकेन्द्रियजाति नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह जघन्य पर्याप्त निर्वृत्तिसे निवृत्त हुए अन्तर्मुहुर्तवर्ती पर्याप्त एकेन्द्रियके होती है । पंचेन्द्रियजाति, उच्छ्वास, त्रस, बादर और पर्याप्त नामकर्मोंका उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? उनकी उत्कृष्ट उदीरणा तेतीस सागरोपमकी आयुवाले देवके होती है। अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, अयशकीर्ति और नीचगोत्रकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? उनकी उत्कृष्ट उदीरणा तेतीस सागरोपमकी आयवाले नरक पर्याप्तके होती है। अस्थिर और अशभ नामप्रकृतियोंकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त जीवके होती है । स्थावर नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है? वह जघन्य पर्याप्त निर्वृत्तिसे उत्पन्न गई। पज्जत्तक्कडमिच्छस्सोहीणमणोहिलद्धिस्स ॥ क. प्र. ४, ६८. जे गंते त्ति- योगिनः सयोगकेवलिनोऽन्ते सर्वापवर्तनरूपे वर्तमानस्य शेषाणमक्तव्यतिरिक्तानां शुभप्रकृतीनां तैजससप्तक-मृदु-लघुवर्जशुभवर्णाद्येकादशकागरुलघ-स्थिर-शम-सुभगादेय-यशःकीति-निर्माणोच्चैर्गोत्रतीर्थकरनाम्नां (२५) पंचविंशतिसंख्यानामत्कृष्ट नभागोदीरणा भवति । ( मलयगिरिटीका ). * तातो 'जहण्णपज्जत्तीए' इति पाठः। हस्सठिई पज्जत्ता तन्नामा विगलजाइ-सुहुमाणं । क. प्र. ४, ६५. .पंचिदिय-तस-बादर पज्जत्तग-साइ-सुस्सर-गईणं । वे उव्वुस्मासाणं देवो जेटुट्टिइसमत्ता ।। क. प्र. ४,६०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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