SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा ( १७७ दसणावरणीयस्स उक्कस्सिया अणुभागुदीरणा कस्स? सुहमस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स जहण्णलद्धियस्स.। सेसपंचण्णं दसणावरणीयाणं उक्कस्सउदीरणा कस्स ? सण्णिपज्जत्तयस्स मज्झिमपरिणामस्स तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स+ । सादस्स० कस्स? देवस्स तेत्तीसंसागरोवमियस्स पज्जत्तयस्स । असादस्स रइयस्स तेत्तीसंसागरोवमियस्स पज्जत्तस्स मिच्छाइटिस्स मज्झिमपरिणामस्स । कि कारणं ? उक्कस्ससंकिलिट्ठो वेदणीयं * ण बुज्झदि + त्ति ।। - सम्मत्तस्स कस्स ? सम्माइद्विस्स से काले मिच्छत्तं पडिवज्जमाणतप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स। सम्मामिच्छत्तस्स कस्स? सम्मामिच्छाइद्विस्स से काले मिच्छत्तं गच्छंतस्स तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स। मिच्छत्त-सोलसकसायाणं कस्स ? उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स मिच्छाइट्ठिस्स । णवंसयवेद-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणं कस्स ? तेत्तीससागरोवमियणेरइयस्स पज्जत्तयस्स मज्झिमपरिणामस्स तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स । हस्स-रदीणं कस्स? सहस्सार-देवस्स पज्जत्तयस्स मिच्छाइट्ठिस्स तप्पाओग्गसंकिलिटुस्स। इथिवेद उदीरणा किसके होती है ? वह जघन्य लब्धिवाले सूक्ष्म जीवके तद्भवस्थ होनेके प्रथम समयमें होती है। शेष पांच दर्शनावरण प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह तत्प्रायोग्य संक्लेशसे सहित मध्यम परिणामवाले संज्ञी पर्याप्त जीवके होती है। सातावेदनीयकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाले पर्याप्त देवके होती है । असातावेदनीयकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाले मध्यम परिणामयुक्त पर्याप्त मिथ्यादृष्टि नारकीके होती है शंका-- इसका कारण क्या है ? समाधान-- इसका कारण यह है कि उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ जीव वेदनीयके उत्कृष्ट अनुभागका अनुभवन नहीं करता है । सम्यक्त्व प्रकृतिकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह अनन्तर समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले ऐसे तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त हुए सम्यग्दृष्टि जीवके होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह अनन्तर समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले ऐसे तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त हुए सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवके होती है। मिथ्यात्व व सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है? वह उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुए मिथ्यादृष्टि जीवके होती है । नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाले नारक पर्याप्त जीवके होती है जो मध्यम परिणामोंसे युक्त होता हुआ तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त है। हास्य व रतिको उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त हुए सहस्त्रार कल्पवासी पर्याप्त मिथ्यादृष्टि देवके होती है । स्त्रीवेद - ४ काप्रतावतोऽग्रे ' सण्णि रज्जत्तयस्स सब्वसंकिलिस्स' इत्येतावानयमधिकः पठोऽस्ति । दाणा अचक्खूणं जेट्ठा आयम्मि हीणल द्धिस्स । सुहुमस्स xxx ॥ क. प्र. ४, ५८. . निदाइपंचगस्स य मज्झिमपरिणामसंकिलिटुस्स । क. प्र. ४, ५९. * प्रत्योरुभयोरेव 'वेदं' इति पाठः। 4 मप्रतिपाठोयऽम्, का-ताप्रत्योः 'वज्झदि' इति पाठः। सम्मत्त-मीसगाणं से काले गहिहित्ति मिच्छत्तं । क.प्र.४, ६१. हाम-रईण सहस्सारगस्स पज्जत्तदेवस्स ॥ क. प्र. ४, ६१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy