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उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा
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दसणावरणीयस्स उक्कस्सिया अणुभागुदीरणा कस्स? सुहमस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स जहण्णलद्धियस्स.। सेसपंचण्णं दसणावरणीयाणं उक्कस्सउदीरणा कस्स ? सण्णिपज्जत्तयस्स मज्झिमपरिणामस्स तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स+ । सादस्स० कस्स? देवस्स तेत्तीसंसागरोवमियस्स पज्जत्तयस्स । असादस्स रइयस्स तेत्तीसंसागरोवमियस्स पज्जत्तस्स मिच्छाइटिस्स मज्झिमपरिणामस्स । कि कारणं ? उक्कस्ससंकिलिट्ठो वेदणीयं * ण बुज्झदि + त्ति ।। - सम्मत्तस्स कस्स ? सम्माइद्विस्स से काले मिच्छत्तं पडिवज्जमाणतप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स। सम्मामिच्छत्तस्स कस्स? सम्मामिच्छाइद्विस्स से काले मिच्छत्तं गच्छंतस्स तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स। मिच्छत्त-सोलसकसायाणं कस्स ? उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स मिच्छाइट्ठिस्स । णवंसयवेद-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणं कस्स ? तेत्तीससागरोवमियणेरइयस्स पज्जत्तयस्स मज्झिमपरिणामस्स तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स । हस्स-रदीणं कस्स? सहस्सार-देवस्स पज्जत्तयस्स मिच्छाइट्ठिस्स तप्पाओग्गसंकिलिटुस्स। इथिवेद
उदीरणा किसके होती है ? वह जघन्य लब्धिवाले सूक्ष्म जीवके तद्भवस्थ होनेके प्रथम समयमें होती है। शेष पांच दर्शनावरण प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह तत्प्रायोग्य संक्लेशसे सहित मध्यम परिणामवाले संज्ञी पर्याप्त जीवके होती है। सातावेदनीयकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाले पर्याप्त देवके होती है । असातावेदनीयकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाले मध्यम परिणामयुक्त पर्याप्त मिथ्यादृष्टि नारकीके होती है
शंका-- इसका कारण क्या है ?
समाधान-- इसका कारण यह है कि उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ जीव वेदनीयके उत्कृष्ट अनुभागका अनुभवन नहीं करता है ।
सम्यक्त्व प्रकृतिकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह अनन्तर समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले ऐसे तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त हुए सम्यग्दृष्टि जीवके होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह अनन्तर समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले ऐसे तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त हुए सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवके होती है। मिथ्यात्व व सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है? वह उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुए मिथ्यादृष्टि जीवके होती है । नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाले नारक पर्याप्त जीवके होती है जो मध्यम परिणामोंसे युक्त होता हुआ तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त है। हास्य व रतिको उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त हुए सहस्त्रार कल्पवासी पर्याप्त मिथ्यादृष्टि देवके होती है । स्त्रीवेद
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४ काप्रतावतोऽग्रे ' सण्णि रज्जत्तयस्स सब्वसंकिलिस्स' इत्येतावानयमधिकः पठोऽस्ति । दाणा अचक्खूणं जेट्ठा आयम्मि हीणल द्धिस्स । सुहुमस्स xxx ॥ क. प्र. ४, ५८. . निदाइपंचगस्स य मज्झिमपरिणामसंकिलिटुस्स । क. प्र. ४, ५९. * प्रत्योरुभयोरेव 'वेदं' इति पाठः। 4 मप्रतिपाठोयऽम्, का-ताप्रत्योः 'वज्झदि' इति पाठः।
सम्मत्त-मीसगाणं से काले गहिहित्ति मिच्छत्तं । क.प्र.४, ६१. हाम-रईण सहस्सारगस्स पज्जत्तदेवस्स ॥ क. प्र. ४, ६१. Jain Education International For Private & Personal Use Only
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