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________________ १७६ ) छक्खंडागमे संतकम्म तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी--उपधाद--अप्पसत्थविहायगदि-थावर-सुहुम--अपज्जत्तसाहारणसरीर-अथिर-असुभ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज--अजसकित्ति-णीचागोद-पंचतराइयपयडीओ असुहाओ । सादावेदणीय-आउतिय-मणुसगइ--देवगइ-पंचिदियजादिओरालिय-वेउव्विय-आहार-तेजा-कम्मइयसरीर-समचउरससंठाण-ओरालिय-वेउत्वियआहारसरीरअंगोवंग-वज्जरिसहसंघडण-पसत्थवण्ण-गंध-रस-फास-मणुसगइ-देवगइपाओग्गाणुपुवी-अगुरुअलहुअ-परघादुस्सास-आदावुज्जोव--पसत्थविहायगइ-तसबादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिर-सुभ-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-जसकित्त-णिमिण-तित्थयर उच्चागोदपयडीओ सुहाओ। एवं सुहासुहपरूवणा समत्ता। एत्तो सामित्तपरूवणा कीरदे। तं जहा- आभिणिबोहियणाणावरणीयस्स उक्कस्सिया अणुभागउदीरणा कस्स? सण्णिस्स पज्जत्तयदस्स उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स । सुदमणपज्जव-ओहि-केवलणाणावरणाणमाभिणिबोहियणाणावरणभंगो। चक्खुदंसणावरणीयस्स उक्कस्सउदीरणा कस्स? तीइंदियपज्जत्तयस्स सव्वसंकिलिटुस्स। ओहिकेवलदसणावरणाणं उक्कस्सिया कस्स? सण्णिपज्जत्तयस्स सव्वसंकिलिट्ठस्स। णवरि ओहिणाण-दसणावरणीयाणं उक्कस्सुदीरणा ओहिलंभेणुज्झियस्स वत्तव्वा । अचक्खु गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारणशरीर, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, अयशकीति, नीचगोत्र और पांच अन्तराय; ये प्रकृतियां अशुभ हैं। सातावेदनीय, शेष तीन आयु, मनुष्यगति, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिक, वैक्रियिक व आहारक शरीरांगोपांग, वज्रर्षभवज्रनाराचसंहनन, प्रशस्त वर्ण, गन्ध, रस व स्पर्श, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, देवगतिप्रायोग्यानपूर्वी, अगुरुलघु, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, निर्माण, तीर्थंकर और ऊंच गोत्र; ये प्रकृतियां शुभ हैं। इस प्रकार शुभाशुभप्ररूपणा समाप्त हुई। __ यहां स्वामित्वप्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है- आभिनिबोधिकज्ञानावरणकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा किसके होती है ? वह संज्ञी, पर्याप्त एवं उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त जीवके होती है । श्रुतज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण और केवलज्ञानावरणकी प्ररूपणा आभिनिबोधिकज्ञानावरणके समान है। चक्षुदर्शनावरणकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह त्रीन्द्रिय पर्याप्त सर्वसंक्लिष्ट जीवके होती है। अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरणकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह संज्ञी पर्याप्त सर्वसंक्लिष्ट जीवके होती है। विशेष इतना है कि अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी उत्कृष्ट उदीरणा अवधिज्ञान और अवधिदर्शनकी प्राप्तिसे रहित जीवके कहना चाहिये। अचक्षुदर्शनावरणकी उत्कृष्ट xxxx चक्खुणो पुण तेइंदिय सवपज्जत्ते ।। क. प्र. ४, ५८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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