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________________ उवक्कमाणियोगद्दारे ट्ठिदिउदीरणा ( १५१ जहण्णदिदितेजा-कम्मइयसरीराणं जहण्णदिदिउदीरणा विसेसाहिया, जट्ठिदि० विसेसाहिया । सादस्स जहण्णढिदिउदीरणा विसेसाहिया, जट्ठिदि० विसेसाहिया । असादस्स जहण्णदिदिउदीरणा विसेसाहिया, जट्ठिदि० विसेसाहिया । पंचणाणावरणीयणवदंसणावरणीय-पंचंतराइयाणं जहण्णटिदिउदीरणा विसेसाहिया, जट्ठिदि० विसेसाहिया। पुरिसवेदस्स जहण्णदिदिउदीरणा विसेसाहिया, जट्रिदि० विसेसाहिया। हस्स-रदीणं जहण्णट्ठिदिउदीरणा विसेसाहिया, जढिदि० विसेसाहिया। अरदि-सोगाणं जहण्णट्ठिदिउदीरणा विसेसाहिया, जट्ठिदि० विसेसाहिया। णवंसयवेदस्स जहण्णट्ठिदिउदीरणा विसेसाहिया, एइंदिएसु चेव पडिवक्खबंधगद्धं गालिय जहण्णढिदि उदोरणाविहाणादो। पंचिदियतिरिक्खपडिवक्खबंधगद्धाओ किण्ण गलिदाओ? णवंसयवेदपाओग्गविसोहीए णवंसयवेदे. बज्झामाणे तट्ठिदीए बहुत्तप्पसंगादो । जट्ठिदि० विसेसाहिया । भय-दुगुंछाणं जहण्णट्ठिदिउदोरणा विसेसाहिया, जट्ठिदि० विसेसाहिया। सोलसकसायाणं जहण्णट्ठिदिउदीरणा सरिसा, जट्ठिदि० विसेसाहिया । इथिवेदस्स जहण्णट्ठिदिउदीरणा विसेसाहिया । कुदो कसायट्ठिदीदो इत्थिवेदह्रिदीए गलिदपडिवक्खबंधगद्धाए विसेसाहियत्तं ? ण, इत्थिवेदोशरीरोंकी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है, ज-स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है । सातावेदनीयकी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है, ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है। असातावेदनीय जघन्य स्थितिकी-उदीरणा विशेष अधिक है, ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है। पांच ज्ञानावरणीय, नौ दर्शनावरणीय और पांच अन्तरायकी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है । पुरुषवेदकी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है, ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है। हास्य व रतिकी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है, ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है। अरति व शोककी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है, ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है। नपुंसकवेदकी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है, क्योंकि, एकेन्द्रिय जीवोंमें ही प्रतिपक्षभूत प्रकृतियोंके बन्धककालको गला कर जघन्य स्थितिकी उदीरणाका विधान है। शंका- पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में प्रतिपक्षभूत प्रकृतियोंके बन्धकाल क्यों नहीं गलते ? समाधान- कारण कि नपुंसकवेदके बन्धयोग्य विशुद्धिके द्वारा नपुंसकवेदके वांधे जानेपर चूंकि उसकी स्थितिके बहुत होनेका प्रसंग आता है, अतएव वे वहां नहीं गलते । नपुंसकवेदकी जघन्य स्थिति-उदीरणासे उसकी ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है। भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है, ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है। सोलह कषायोंकी जघन्य स्थिति उदीरणा समान है, ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है। स्त्रीवेदकी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है। शंका- कषायस्थितिकी अपेक्षा प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धककालसे रहित स्त्रीवेदकी स्थिति विशेष अधिक क्यों है ? Jain Education Internatio समाधान- नहीं, क्योंकि स्त्रीवेदके उदय युक्त जीवमें स्त्रीवेदके उदयके समुत्पादनार्थ ainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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