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________________ १५२ ) छक्खंडागमे संतकम्म दइल्ले समुप्पायणढं इत्थिवेदविसोहीए इथिवेदेण सह बज्झमाणकसायाणमहियद्विदीदो पडिवक्खबंधगद्धाओ वि बहुत्तुवलंभादो । जट्ठिदि० विसेसाहिया। सम्मामिच्छ-तस्स जहण्णढिदिउदीरणा विसेसाहिया, जट्टिदि० विसेसाहिया। उच्चागोदस्स जहपणढिदिउदीरणा संखेज्जगुणा, जट्ठिदि० विसेसाहिया। तिरिक्खेसु णीचागोदस्स चेव उदीरणा होदि त्ति सव्वत्थ परूविदं । एत्थ पुण उच्चागोदस्स वि परूवणा परविदा, तेण पुवावरविरोहो त्ति भणिदे- ण, तिरिक्खेसु संजमासंजमं परिवालयंतेसु उच्चागोदत्तुवलंभादो। उच्चागोदे देस-सयलसंजमणिबंधणे संते मिच्छाइट्ठीसु तदभावो त्ति णासंकणिज्ज, तत्थ वि उच्चागोदजणिदसंजमजोगत्तावेक्खाए उच्चागोदत्तं पडि विरोहाभावादो। एवं तिरिक्खगदीए जहण्णढिदिउदीरणादंडओ समत्तो। तिरिक्खणीसु मिच्छत्त-तिरिक्खाउआणं जहण्णटिदिउदीरणा थोवा, जटिदिउदी० असंखेज्जगुणा। जसगित्तीए जहण्णट्ठिदिउदीरणा असंखेज्जगुणा, जट्ठिदि० विसेसाहिया। अजसगित्तीए जहण्णटिदिउदीरणा विसेसाहिया, जट्ठिदि० विसेसाहिया। तिरिक्खगइणामाए जहण्णटिदिउदीरणा विसेसाहिया, जट्ठिदि० विसेसाहिया। णीचागोदस्स स्त्रीवेदके बन्ध योग्य विशुद्धिके द्वारा स्त्रीवेदके साथ बन्धको प्राप्त होनेवाली कषायों की अधिक स्थितिसे प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका वन्धककाल भी बहुत पाया जाता है । स्त्रीधेदकी जघन्य स्थिति-उदीरणासे उसकी ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है । सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है, ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है। उच्चगोत्रकी जघन्य स्थिति-उदीरणा संख्यातगुणी है, ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है । शंका- तिर्यंचोंमें नीचगोत्रकी ही उदीरणा होती है, ऐसी प्ररूपणा सर्वत्र की गयी है। परन्तु यहां उच्चगोत्रकी भी उनमें प्ररूपणा की गयी है, अतएव इससे पूर्वापर कथनमें विरोध आता है ? समाधान- ऐसा कहनेपर उतर देते हैं कि इसमें पूर्वापर विरोध नहीं है, क्योंकि, संयमासंयमको पालनेवाले तिर्यंचोंमें उच्वगोत्र पाया जाता है । यदि उच्चगोत्रके कारण देशसंयम और सकलसंयम हैं तो फिर मिथ्यादृष्टियों में उसका अभाव होना चाहिये ? समाधान- ऐसी आशंका करना योग्य नहीं है, क्योंकि, उनमें भी उच्चगोत्रके निमित्तसे उत्पन्न हुई संयमग्रहणकी योग्यताकी अपेक्षा उच्चगोत्रके होने में कोई विरोध नहीं है। इस प्रकार तिर्यंचगतिमें जघन्य स्थिति-उदीरणादण्डक समाप्त हुआ। तिर्यंच स्त्रियोंमें मिथ्यात्व और तिर्यंच आयुकी जघन्य स्थिति-उदीरणा स्तोक है, ज-स्थितिउदीरणा असंख्यातगुणी है। यशकीर्तिकी जवन्य स्थिति-उदीरणा असंख्यातगुणी है, ज-स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। अयशकीतिको जवन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है, ज-स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है । तियं चगति नामकर्मकी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है. ज-स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है । नीचगोत्रकी जघन्य स्थिति-उदीरणा विशेष अधिक है, www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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