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छक्खंडागमे संतकम्मं
- उदीरओ सिया अणुदीरओ । जदि उदीरओ उक्कस्सा अणुक्कस्सा वा । उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समऊणमादि काढूण जाव पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेणूण- चत्तालीसंसागरोवमको डाकोडीओ त्ति । णिरयाउअस्स सिया उदीरओ सिया अणुदीरओ । जदि उदीरओ णियमा अणुक्कस्सा अंतोमुहुत्तमादि काढूण जाव समयाहियावलिया त्ति । मणुस - तिरिक्खाउआणं सिया उदीरओ सिया अणुदीरओ । जदि उदीरओ नियमा असंखेज्जगुणहीणद्विदीए उदीरओ । देवाउअस्स सिया उदीरओ सिया * अणुदीरओ । जदि उदीरओ सादिरेयअट्ठारससागरोवमाणि आदि काढूण जाव ( समयाहियावलिया त । णिरयगइ देवगइणामाणं सिया उदीरओ सिया अणुदीरओ । जदि उदीरओ •णियमा अणुक्कस्सा अंतोमुहुत्तमादि काढूण जाव ) सागरोवमसहस्सअंतो । मणुसगदीए सिया उदीरओ सिया अणुदोरओ । जदि उदीरओ उक्कस्सा अणुक्कस्सा वा । जदि अणुक्कस्सा समऊणमादि काढूण जाव अंतोकोडाकोडि त्ति । तिरक्खगदीए सिया उदीओसिया अणुदीरओ । जदि उदीरओ णियसा अणुक्कस्सा समऊणमादि का जाव अंतोकोडाकोडि त्ति । एवं सेसाओ वि सव्वणामपयडीओ जाणिवण परूवेयव्वाओ। जहा सादेण सह सण्णियासो कदो तहा इत्थि पुरिसवेद-हस्स-रदीणं परियत्तमाणसुह
अनुत्कृष्ट दोनों स्थितियों का उदीरक होता है । उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट एक समय कमको आदि लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भागसे कम चालीस कोड़ाकोडि सागरोपम प्रमाण तक होती है । नाकाका कदाचित् उदीरक और कदाचित् अनुदीरक होता है । यदि उदीरक होता है तो नियमसे अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता हुआ अन्तर्मुहूर्तको आदि लेकर एक समय अधिक आवली मात्र अनुत्कृष्ट स्थिति तकका उदीरक होता है। मनुष्य व तिर्यंच आयुका कदाचित् उदीरक और कदाचित् अनुदीरक होता है । यदि उदीरक होता है तो नियमसे असंख्यातगुणी हीनस्थितिका उदीरक होता है । देवायुका कदाचित् उदीरक और कदाचित् अनुदीरक होता है । -यदि उसका उदीरक होता है तो साधिक अठारह सागरोपमोंको आदि करके एक समय अधिक - आवली मात्र स्थिति तकका उदीरक होता है । नरकगति व देवगति नामकर्मो का कदाचित् उदीरक व कदाचित् अनुदीरक होता है। यदि उदीरक होता है तो नियमसे अन्तर्मुहूर्तको आदि करके हजार सागरोपमोंके भीतर तक अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है । मनुष्यगतिका कदाचित् उदीरक और कदाचित् अनुदीरक होता है । यदि उदीरक होता है तो उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट दोनोंका उदीरक होता है । यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है तो उत्कृष्टसे एक समय कम स्थितिको आदि करके अन्तः कोड़ाकोडि सागरोपम प्रमाण तक अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है । तिर्यंचगतिका कदाचित् उदीरक और कदाचित् अनुदीरक होता है । यदि उदीरक होता है तो नियम से एक समय कमको आदि करके अन्तःकोडा कोडि सागरोपम तक अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है । इसी प्रकार से शेष सभी नामप्रकृतियोंकी जानकर प्ररूपणा करना चाहिये । जिस प्रकार सातावेदनीयके साथ संनिकर्षकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकारसे स्त्रीवेद, पुरुषवेद हास्य
Q ताप्रतो' उदीरओ (ण) नियमा' इति पाठः । * काप्रतौ ' देवाउअस्स उदीरया प्रिय ', ताप्रती 'देवाउअस्स (सिया ) उदीरया (ओ) सिया Person कोणडकस्थोऽयं पाठस्ताप्रती नोपलभ्यते Jain Education nati
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