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________________ १३४ ) छक्खंडागमे संतकम्म . जहण्णण अंतोमुहत्तं । अणुक्कस्सद्विदिउदीरणंतरं जहण्णण एगसमओ । उकस्सेण दोण्णं पि पमाणमणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरिया।। ओरालियसरीरस्स उक्कस्सद्विदिउदीरणंतरं जहण्णेण दसवाससहस्साणि सादिरेयाणि, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्कस्सटिदिउदोरणंतरं जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि अंतोमुत्तब्भहियागि । वेउब्वियसरीरस्स उक्कस्सद्विदिउदीरणंतरं जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्कस्सदिदिउदीरणंतरं जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा। आहारसरीरस्स उक्कस्स-अणुक्कस्सट्ठिदिउदीरणंतरं जहणेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण उवड्ढपोग्गलपरियठें। तेजा-कम्मइयसरीराणं उक्कस्सदिदिउदीरणंतरं जहण्णण अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्कस्सटिदिउदीरणंतरं जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । जहा सरीरणामाणं तहा तेसिमंगोवंग-बंधण-संघादाणं पि वत्तव्वं । णवरि ओरालियअंगोवंगअणुक्कस्सद्विदिउदीरणंतरं कम्मइयसरीर-एइंदियट्ठिदी। छण्णं संठाणाणमुक्कस्सद्विदिउदीरणंतरं जहण्णेण एगसमओ। णवरि हुंडसंठाणस्स महर्त है। उसकी अनुत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय मात्र होता है। उत्कर्षसे उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणा और अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणा इन दोनोंके ही अन्तरका प्रमाण असंख्यात पदगलपरिवर्तन मात्र अनन्त काल है। औदारिकशरीर नामकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे साधिक दस हजार वर्ष और उत्कर्षसे असंख्यात पूदगलपरिवर्तन मात्र अनन्त काल प्रमाण होता है। उसकी अनकृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक, समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण होता है। वैक्रियिकशरीर नामकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र अनन्त काल प्रमाण होता है । उसकी अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होता है। आहारकशरीर नामकर्मकी उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाओंका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होता है। तैजस और कार्पण शरीरनामकर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल मात्र होता है। उनकी अनुत्कष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है। जैसे शरीरनामकर्मोकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाओंके अंतरकी प्ररूपणा की गई है वैसे ही उनके आंगोपांग, बंधन और संघात नामकर्मोंकी भी उक्त दोनों उदीरणाओंके अंतरकी प्ररूपणा करनी चाहिए। विशेष इतना है कि औदारिकशरीर आंगोपांगकी अनुत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका अंतर कार्मणशरीर अर्थात् कर्मणकाययोगके दो समय अधिक एकेन्द्रियको कायस्थिति प्रमाण होता है । __ छह संस्थानोंकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय मात्र होता है। विशेष इतना है कि हुण्डकसंस्थानका उक्त अंतर अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है। उत्कर्षसे छहों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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