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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे द्विदिउदीरणा ( १३३ अंतोमहत्तं, उक्कस्सेण एइंदियद्विदी। देवाउअस्स उक्कस्सद्विदिउदीरणंतरं णत्थि । अणुक्कस्सद्विदिउदीरणंतरं जहण्णण अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा। णिरयगइ-तिरिक्खगइणामाए उक्कस्सदिदिउदीरणंतरं जहण्णेण दसवाससहस्साणि सादिरेयाणि, णिरयगईए सत्तारस सागरोवमाणि सादिरेयाणि वा जहण्णंतरं। उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्कस्सटिदिउदीरणंतरं जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण जहाकमेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा सागरोवमसदपुधत्तं । देवगइणामाए उक्कस्साणुक्कस्सटिदिउदीरणंतरं जहण्णेण दसवाससहस्साणि सादिरेयाणि अंतोमुत्तं, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । मणुसगइणामाए उक्कस्साणुक्कस्सट्ठिदिउदीरणंतरं जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । एइंदिय-बीइंदियतेइंदिय-चरिदियजादिणामाणं उक्कस्सट्ठिदिउदीरणंतरं जहण्णेण दसवाससहस्साणि सादिरेयाणि अंतोमुत्तं, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्कस्सटिदि उदीरणंतरं जहण्णण एगसमओ अंतोमुत्तं, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा। णवरि एइंदियजादिणामाए अणुक्कस्सटिदिउदीरणंतरं बेसागरोवमसहस्साणि पुवकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि । पंचिदियजादिणामाए उक्कस्सटिदिउदीरणंतरं बराबर होता है। देवायुकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर नहीं होता। उसकी अनुत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र अनन्त काल प्रमाण नरकगति और तिर्यग्गति नामकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे साधिक दस हजार वर्ष प्रमाण होता है । अथवा, नरकगतिकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका जघन्य अन्तर साधिक सत्तरह सागरोपम प्रमाण होता है। उक्त दोनों प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र अनन्त काल प्रमाण होता है। उनकी अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे क्रमशः असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र अनन्तकाल और सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण होता है । देवगति नामकमंकी उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाओंका अन्तर जघन्यसे साधिक दस हजार वर्ष व अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र अनन्त काल प्रमाण होता है। मनुष्यगति नामकर्मकी उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाओंका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्तकाल मात्र होता है। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जातिनामकर्मोकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे साधिक दस हजार वर्ष व अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र अनंत काल प्रमाण होता है। उनकी अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय व अन्तर्मुहुर्त तथा उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र अनंत काल प्रमाण होता है। विशेष इतना है कि एकेन्द्रिय जातिनामकर्मकी अनुत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक दो हजार सागरोपम Jain Educal प्रमाण होता है । पंचेन्द्रिय जातिनामकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्त-jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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