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छक्खंडागमे संतकम्मं
पोग्गलपरियट्टा । अणुक्कस्सट्ठिदिउदीरणंतरं जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा । अरदि- सोग - भय - दुगुंछ - - - णवंसयवेदाण मुक्कस्सट्ठिदिउदीरणंतरं जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण अनंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्कस्सट्ठिदिउदीरतरं जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण छम्मासा अंतोमुहुत्तं, णवुंसयवेदस्स सागरोवमसदपुधत्तं । इत्थवेद - पुरिसवेद - हस्स - रढीणमुक्कस्सट्ठिदिउदीरणंतरं जहणण एगसमओ, उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्कस्सट्ठिदिउदीरणंतरं जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा वरि हस्त- रदीर्ण तेत्तीस सागरोवमाणि सादिरेयाणि ।
मणुस - तिरिक्खाउआणं उक्कस्सट्ठिदिउदीरणंतरं जहण्णेण तिष्णि पलिदोवमाणि सादिरेयाणि, उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्कस्सट्टि दिउदीरणंतरं जहणेण गावलिया । उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं मणुस्साउअस्स असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । णिरयाउअस्स उक्कस्सट्ठिदिउदीरणंतरं जहण्णेण तेत्तीसं सागरोवमाणि मासyधत्तेण भहियाणि, मासपुधत्तादो हेट्ठा उक्कस्सणिरयाउअस्स * बंधाभावादो; उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्कस्सट्ठिदिउदीरणंतरं जहणेण
जघन्यते अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र अनन्त काल प्रमाण होता है । उनकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे कुछ कम एक पूर्वकोटि मात्र होता है । अरति, शोक, भय, जुगुप्सा और नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका अंतर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र अनन्त काल प्रमाण होता है । उनकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका अंतर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अरति व शोकका छह मास तथा भय और जुगुप्साका अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है । नपुंसकवेदकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका यह अंतर उत्कर्षसे सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण होता है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य व रतिकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र होता है । उनकी अनुत्कृष्ट स्थिति - उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होता हैं । विशेष इतना है कि उक्त अन्तर हास्य और रतिका उत्कर्षसे साधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण होता है ।
मनुष्य व तिर्यंच आयुकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका अंतर जघन्यसे साधिक तीन पल्योपम और उत्कर्ष से असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र होता है। उनकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणाका अंतर जघन्यसे एक आवली मात्र होता है । उत्कर्षते वह तिर्यंच आयुका सागरोपमशतपृथक्त्व और मनुष्यायुका असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र होता है। नारकायुकी उत्कृष्ट स्थिति - उदीरणाका अन्तर जघन्यसे मासपृथक्त्वसे अधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण होता है, क्योंकि, ( ऐसे जीवके तिर्यंच होनेपर ) मासपृथक्त्व से नीचे उत्कृष्ट नारकायुका बन्ध सम्भव नहीं है । उक्त अन्तर उसका उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन नात्र अनन्तकाल प्रमाण होता है । उसकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका अंतर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे वह एकेन्द्रियकी स्थिति के
* काप्रतौ ' णिरयाउअजीवस्स', तातो 'णिरयाउअ (जीव ) स्स ' इति पाठ: ।
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