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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे ट्ठिदिउदीरणा ( १३५ अंतोमुहत्त। उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा। अणुक्कस्सटिदिउदीरणंतरं (जहण्णेण एगसमओ उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा। णवरि हुंडसंठाणस्स तेवट्ठि-) सागरोवमसदं लादिरेयं । छण्णं संघडणाणं उक्कस्सटिदिउदीरणंतरं जहण्णेण एगसमओ । णवरि असंपत्तसेवट्टसंघडणस्स दसवासहस्साणि सादिरेयाणि । उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अगुक्कस्सद्विदिउदीरणंतरं जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण असंखेज्जापोग्गलपरियट्टा। वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-उवघाद-परघाद-उस्सास-उज्जोव-अप्पसत्थविहायगदि-तस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-अथिर-असुहपंचय-णिमिण-णीचागोदंतराइयाणमुक्कस्सटिदिउदीरणंतरं जहण्णण अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण असंखज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्कस्सटिदिउदीरणंतरं जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण वण्ण-गंध-रसफास-अगुरुअलहुअ-सुहसुस्सर-आदेज्ज-णिमिणंतराइय-उवघाद-परघाद-उस्सासाणमंतोमुहुत्तं, अप्पसत्थविहायगइ-दुस्सर-तसाणमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, उज्जोव-बादरणामाणमसंखेज्जा लोगा, पज्जत्तस्स अंतोमुत्तं, पत्तेयसरीरस्स अड्ढाइज्जा पोग्गलपरियट्टा, दुभग-अणादेज्ज-अजसगित्ति-णीचागोदाणं सागरोवमसदपुधत्तं । तिण्णमाणुपुत्वीणं जहा गदिणामाणं तहा वत्तव्वं । णवरि तिरिक्खगइपाओग्गाणुसंस्थानोंकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अंतर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र अनंत काल प्रमाण होता है। उनकी अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अंतर (जघन्यसे एक समय मात्र होता है, उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होता है। विशेष इतना है कि हुण्डकसंस्थानका उत्कर्षसे अन्तर ) साधिक सौ सागरोपम प्रमाण होता है। छह संहननोंकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अंतर जघन्यसे एक समय मात्र होता है। विशेष इतना है कि असंप्राप्तासृपाटिकासंहननकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका जघन्यसे साधिक दस हजार वर्ष प्रमाण होता है। उत्कर्षसे छहों संहननोंकी उत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अंतर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र होता है। उनकी अनत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अंतर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होता है। वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परधात, उच्छ्वास, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, अस्थिर, अशुभादिक पांच, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तराय; इनकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका अंतर जघन्यसे अंतर्मुहूर्त और उत्कर्षते असंख्यातपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होता है। उनकी अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय मात्र होता है। उत्कर्षसे वह वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, शुभ, सुस्वर, आदेय, निर्माण, अन्तराय, उपघात, परघात और उच्छ्वासका अन्तर्मुहुर्त मात्र; अप्रशस्तविहायोगति, दुस्वर और त्रसका असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन; उद्योत और बादर नामकर्मोंका असंख्यात लोक, पर्याप्तका अन्तर्मुहुर्त, प्रत्येकशरीरका अढाई पुद्गलपरिवर्तन; तथा दुर्भग अनादेय, अयशकीति और नीचगोत्रका सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण होता है। तीन आनुपूर्वियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति-उदीरणाके अंतरका कथन गतिनामकर्मोके समान करना चाहिये । विशेष इतना है कि तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मकी अनुत्कृष्ट For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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