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उवकमाणुयोगद्दारे णामकम्मोउदीरणट्टाणपरूवणा
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एक्कवीसपयडीहि एगमुदीरणाट्ठाणं होदि । तं कत्थ ? विग्गहगदीए वट्टमाणएइंदि यमि होदि । तं केवचिरं ? जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तिण्णि समया । पुव्विल्ल एक्कवीसपडी आणुपुव्वीमवणेण ओरालियस रीर-हुंडठाण - उवघाद-पत्तेयसाहारणसरीराणमेक्कदरे पक्खित्ते चउवीसाए उदीरणट्ठाणं होदि । तं कत्थं ? गहिदसरीरपढमसमय पहुडि जाव सरोरपज्जत्तीए अणिल्लेविदचरिमसमओ ति एदम्मि अद्धा Q । तं चिरं ? जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । पुणो अपज्जत्तमवणिय सेसचउवीसपयडीसु परघादे पक्खित्ते पंचवीसपयडीणमुदीरणट्ठाणं होदि । तं कत्थ ? सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदपढमसमयमादि काढूण जाव आणपाणपज्जत्तीए अणिल्लेविदaftaarओति । तं केवचिरं ? जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । तस्सेव आणपाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स पुव्विल्लपंचवीसपयडीसु उसासे पक्खित्ते छन्वीसपयडीणमुदीरणट्ठाणं होदि । तं कस्स ? आणपाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स । तं केवचिरं ? जहणेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तूणबावीसवस्ससहस्साणि ।
आदावुज्जोवुदयसहिदएइंदियस्स वुच्चदे- एक्कवीस - चउवीसउदीरणट्ठाणाणं पुत्रं व परूवणा कायव्वा । पुणो सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स परघाद-आदावुज्जो वाणमेक्कदरे
प्रकृतियोंका एक उदीरणास्थान होता एकेन्द्रिय जीवके होता है । वह कितने उत्कर्ष से तीन समय तक होता है ।
पूर्वोक्त इक्कीस प्रकृतियोंमेंसे आनुपूर्वीको कम करके औदारिकशरीर, हुण्डसंस्थान, उपघात तथा प्रत्येक व साधारण शरीरमें से एक, इन चार प्रकृतियोंको मिला देनेपर चौबीस प्रकृतियों का उदीरणास्थान होता है । वह कहांपर होता है ? वह शरीर ग्रहण करनेके प्रथम समयसे लेकर शरीरपर्याप्ति के पूर्ण होनेके उपान्त्य समय तक इस अध्वानमें होता है । वह कितने काल तक होता है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल तक होता है ।
फिर इनमें से अपर्याप्तको कम करके शेष चौबीस प्रकृतियोंमें परघातको मिला देनेपर पच्चीस प्रकृतियोंका उदीरणास्थान होता है । वह कहांपर होता है ? वह शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त होनेके प्रथम समयको आदि करके आनप्राणपर्याप्ति के पूर्ण होनेके उपान्त्य समय तक होता है । वह कितने काल तक होता है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल तक होता है । आनप्राणपर्याप्ति से पर्याप्त हुए उक्त एकेन्द्रिय जीवकी पूर्वोक्त पच्चीस प्रकृतियोंमें उच्छ्वासके मिला देनेपर छब्बीस प्रकृतियोंका उदीरणास्थान होता है । वह किसके होता है ? वह आन-प्राणपर्याप्ति से पर्याप्त हुए एकेन्द्रिय जीवके होता है । वह कितने काल तक होता है ? वह जघन्यसे अन्तर्मुहुर्त और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्ष तक होता है ।
। वह कहां पर होता है ? वह विग्रहगतिमें वर्तमान काल तक होता है ? वह जघन्यसे एक समय और
अब आतप व उद्योतके उदयसे सहित एकेन्द्रिय जीवके उदीरणास्थानोंका कथन करते हैं- इक्कीस और चौबीस प्रकृति रूप स्थानोंकी प्ररूपणा पहिलेके ही समान करना चाहिये । पुनः शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीवकी पूर्वोक्त चौबीस प्रकृतियों में परघात और आतप उद्योत में से
XXX काप्रती
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अद्धाणं इति पाठः ।
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