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________________ उवकमाणुयोगद्दारे णामकम्मोउदीरणट्टाणपरूवणा ( ८९ एक्कवीसपयडीहि एगमुदीरणाट्ठाणं होदि । तं कत्थ ? विग्गहगदीए वट्टमाणएइंदि यमि होदि । तं केवचिरं ? जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तिण्णि समया । पुव्विल्ल एक्कवीसपडी आणुपुव्वीमवणेण ओरालियस रीर-हुंडठाण - उवघाद-पत्तेयसाहारणसरीराणमेक्कदरे पक्खित्ते चउवीसाए उदीरणट्ठाणं होदि । तं कत्थं ? गहिदसरीरपढमसमय पहुडि जाव सरोरपज्जत्तीए अणिल्लेविदचरिमसमओ ति एदम्मि अद्धा Q । तं चिरं ? जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । पुणो अपज्जत्तमवणिय सेसचउवीसपयडीसु परघादे पक्खित्ते पंचवीसपयडीणमुदीरणट्ठाणं होदि । तं कत्थ ? सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदपढमसमयमादि काढूण जाव आणपाणपज्जत्तीए अणिल्लेविदaftaarओति । तं केवचिरं ? जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । तस्सेव आणपाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स पुव्विल्लपंचवीसपयडीसु उसासे पक्खित्ते छन्वीसपयडीणमुदीरणट्ठाणं होदि । तं कस्स ? आणपाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स । तं केवचिरं ? जहणेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तूणबावीसवस्ससहस्साणि । आदावुज्जोवुदयसहिदएइंदियस्स वुच्चदे- एक्कवीस - चउवीसउदीरणट्ठाणाणं पुत्रं व परूवणा कायव्वा । पुणो सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स परघाद-आदावुज्जो वाणमेक्कदरे प्रकृतियोंका एक उदीरणास्थान होता एकेन्द्रिय जीवके होता है । वह कितने उत्कर्ष से तीन समय तक होता है । पूर्वोक्त इक्कीस प्रकृतियोंमेंसे आनुपूर्वीको कम करके औदारिकशरीर, हुण्डसंस्थान, उपघात तथा प्रत्येक व साधारण शरीरमें से एक, इन चार प्रकृतियोंको मिला देनेपर चौबीस प्रकृतियों का उदीरणास्थान होता है । वह कहांपर होता है ? वह शरीर ग्रहण करनेके प्रथम समयसे लेकर शरीरपर्याप्ति के पूर्ण होनेके उपान्त्य समय तक इस अध्वानमें होता है । वह कितने काल तक होता है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल तक होता है । फिर इनमें से अपर्याप्तको कम करके शेष चौबीस प्रकृतियोंमें परघातको मिला देनेपर पच्चीस प्रकृतियोंका उदीरणास्थान होता है । वह कहांपर होता है ? वह शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त होनेके प्रथम समयको आदि करके आनप्राणपर्याप्ति के पूर्ण होनेके उपान्त्य समय तक होता है । वह कितने काल तक होता है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल तक होता है । आनप्राणपर्याप्ति से पर्याप्त हुए उक्त एकेन्द्रिय जीवकी पूर्वोक्त पच्चीस प्रकृतियोंमें उच्छ्वासके मिला देनेपर छब्बीस प्रकृतियोंका उदीरणास्थान होता है । वह किसके होता है ? वह आन-प्राणपर्याप्ति से पर्याप्त हुए एकेन्द्रिय जीवके होता है । वह कितने काल तक होता है ? वह जघन्यसे अन्तर्मुहुर्त और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्ष तक होता है । । वह कहां पर होता है ? वह विग्रहगतिमें वर्तमान काल तक होता है ? वह जघन्यसे एक समय और अब आतप व उद्योतके उदयसे सहित एकेन्द्रिय जीवके उदीरणास्थानोंका कथन करते हैं- इक्कीस और चौबीस प्रकृति रूप स्थानोंकी प्ररूपणा पहिलेके ही समान करना चाहिये । पुनः शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीवकी पूर्वोक्त चौबीस प्रकृतियों में परघात और आतप उद्योत में से XXX काप्रती Jain Education International अद्धाणं इति पाठः । 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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