SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८६ ) छक्खंडागमे संतकम्म दसण्णं पवेसया असंखेज्जगुणा । णवणं पवेसया संखेज्जगुणा । अट्टष्णं पवेसया संखेज्जगुणा । एवं सव्वणेरइय-देव-भवणादि जाव सहस्सारे त्ति । तिरिक्खेसु पंचपवेसया थोवा । छप्पवेसया असंखेज्जगुणा । उवरि ओघं । एवं पंचिदियतिरिक्खतिगस्स । णवरि दसपवेसया असंखेज्जगुणा । पंचिदियतिरिक्खमणुसअपज्जत्तएसु दसपवेसया थोवा, णवपवेसया संखेज्जगुणा, अट्ठपवेसया संखेज्जगुणा । मणुस्सेसु एक्किस्से पवेसया थोवा, दोण्णं पवेसया संखेज्जगुणा, चदुण्णं पवेसया संखेज्जगुणा, पंचण्णं पवेसया संखेज्जगुणा, छण्णं पवेसया संखेज्जगुणा, सत्तण्णं पवेसया संखेज्जगुणा, दसण्णं पवेसया असंखेज्जगुणा, णवण्णं पवेसया संखेज्जगुणा, अट्ठण्णं पवेसया संखेज्जगुणा । एवं मणुस पज्जत्त-मणुसिणीसु । णवरि जम्हि असंखेज्जगुणं तम्हि संखेज्जगुणं कायव्वं । आणदादि जाव णवगेवज्ज त्ति दसणं पवेसया थोवा, छप्पेवसया संखेज्जगुणा, णवपवेसया संखेज्जगुणा, अट्ठपवेसया संखेज्जगुणा, सत्तपवेसया संखेज्जगुणा। एवमणुद्दिसादि जाव सवढे त्ति । णवरि दसपवेसया णत्थि। आउअस्स द्वाणदीरणा णत्थि। णिरयगईए णामस्स. एक्कवीस पंचवीस सत्तावीस नौ प्रकृतिक स्थानके उदीरक संख्यातगुणे हैं। आठ प्रकृतिक स्थानके उदीरक संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकारसे सब नारक, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार स्वर्ग तकके देवोंके विषयमें अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये । तिर्यंचोंमें पांच प्रकृतिक स्थानके उदीरक स्तोक हैं। छह प्रकृतिक स्थानके उदीरक असंख्यातगुणे हैं । आगे ओघके समान कथन करना चाहिये । इसी प्रकारसे पंचेन्द्रिय तिर्यच आदि तीनके सम्बन्धमें कहना चाहिये । विशेष इतना है कि इनमें दस प्रकृतिक स्थानके उदीरक असंख्यातगुणे हैं । पंवेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकों और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें दस प्रकृतिक स्थानके उदीरक स्तोक, नौके उदीरक संख्यातगुणे तथा आठके उदीरक संख्यातगुणे हैं। मनुष्योंमें एक प्रकृतिक स्थानके उदीरक स्तोक, दोके उदीरक संख्यातगुणे, ( चारके उदीरक संख्यातगुणे, ) पांचके उदीरक संख्यातगुणे, छहके उदीरक संख्यातगुणे, सातके उदीरक संख्यातगुणे, दसके उदीरक असंख्यातगणे, नौके उदीरक संख्यातगणे, तथा आठके उदीरक संख्यातगणे हैं। इसी प्रकार मनष्य पर्याप्त और मनष्यनियोंके विषयमें कथन करना चाहिये । विशेष इतना है कि जहां मनष्योंमें असंख्यातगणा कहा गया है वहां इनमें संख्यातगणा कहना चाहिये। आनत स्वर्गको आदि लेकर नौ ग्रेवेयक पर्यंत देवोंमें दस प्रकृतिक स्थानके उदीरक स्तोक, छहके उदीरक संख्यातगणे, नौके उदीरक संख्यातगणे, आठके उदीरक संख्यातगणे और सातके उदीरक संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार अनुद्दिशोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि विमान तक कथन करना चाहिये । विशेष इतना है कि यहां दसके उदीरक नहीं हैं। आयु कर्मकी स्थानउदीरणा नहीं है । नरकगतिमें नामकर्मके इक्कीस, पच्चीस, सत्ताईस * काप्रती ‘णिरयगईणामस्स ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy