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उवाफमाणुयोगदारे मोहणीयउदीरणढाणपरूवणा
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जीवेहि भंगविचओ समत्तो।
णाणाजीवेहि कालो- एक्किस्से दोण्णं च पवेसया जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । सेसाणप्पवेसयाणं कालो सव्वद्धा । एवं कालो समत्तो।
णाणाजीवेहि अंतरं- एक्किस्से दोण्णं च पसंतरं जहण्णण एयसमओ, उक्कस्सेण छम्मासा । सेसाणं णत्थि अंतरं । एवमंतरं समत्तं।
सण्णियासो- एक्किस्से पवेसओ बेण्हमप्पवेसओ,०। एवं सेसाणं वत्तव्वं । एवं सव्वट्ठाणाणं परूवणा कायव्वा* । एवं सण्णियासो समत्तो।
अप्पा बहुअं-सव्वत्थोवा एक्किस्से पवेसया। दोण्णं पवेसया संखेज्जगुणा । चदुण्णं पवेसया संखेज्जगुणा । पंचण्णं पवेसया असंखेज्जगुणा । छण्णं पवेसया असंखेज्जगुणा। सत्तण्णं पवेसया असंखेज्जगुणा । दसण्णं पवेसया अणंतगुणा । णवणं पवेसया संखज्जगुणा । अट्ठण्णं पवेसया संखेज्जगुणा ।
आदेसेण णिरयगदीए सव्वत्थोवा छण्णं पवेसया। सत्तण्णं पवेसया असंखेज्जगुणा। इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय समाप्त हुआ।
नाना जीवोंकी अपेक्षा काल- एक व दो प्रकृतियोंके उदीरक जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहुर्त काल तक रहते हैं। शेष स्थानोंके उदीरकोंका काल सर्वदा है। इस प्रकार काल समाप्त हुआ।
नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर- एक और दो प्रकृतिक स्थानोंकी उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे छह मास तक होता है। शेष प्रकृतिक स्थानोंकी उदीरणाका अन्तर सम्भव नहीं है । इस प्रकार अन्तर समाप्त हुआ।
संनिकर्ष- एक प्रकृतिक स्थानका उदीरक दो प्रकृतिक स्थानका उदीरक नहीं होता है। इसी प्रकारसे चार, पांच आदि शेष प्रकृतिक स्थानोंको कहना चाहिये । इस प्रकार सब स्थानोंकी प्ररूपणा करना चाहिये । इस प्रकार संनिकर्ष समाप्त हुआ।
___ अल्पबहुत्व- एक प्रकृतिक स्थानके उदीरक सबसे स्तोक हैं। उनसे दो प्रकृतिक स्थानके उदीरक संख्यातगुणे हैं। उनसे चार प्रकृतिक स्थानके उदीरक संख्यातगुणे हैं। उनसे पांच प्रकृतिक स्थानके उदीरक असंख्यातगुणे हैं। उनसे छह प्रकृतिक स्थानके उदीरक असंख्यातगणे हैं। उनसे सात प्रकृतिक स्थानके उदीरक संख्यातगुणे हैं। उनसे दस प्रकृतिक स्थानके उदीरक अनन्तगुणे हैं। उनसे नौ प्रकृतिक स्थानके उदीरक असंख्यातगुणे हैं। उनसे आठ प्रकतिक स्थानके उदीरक संख्यातगण हैं।
आदेशकी अपेक्षा नरकगतिमें छह प्रकृतिक स्थानके उदीरक सबसे स्तोक हैं। सात प्रकृतिक स्थानके उदीरक असंख्यातगुणे हैं। दस प्रकृतिक स्थानके उदीरक असंख्यातगुणे हैं ।
8 उभयोरेव प्रत्यो: 'वेण्हं पवेसओ' इति पाठः। * सण्णियासो। एत्तो सण्णियासो कायव्यो ति अहियारसंभालणवक्कमेदं । एक्किस्से पवेसगो दोण्हमप्पवेसगो। कुदो? परोपारविरुद्धसहावत्तादो। चउण्ड पंचण्हं छण्णं सत्तण्णं अट्ठण्ह णतण्हं दसण्हं च अपवेसगो ति एदमत्थदो लब्भदे, एक्किस्से पवेसगस्स सेसासेसट्रांगाणमरवेसयभावस्स देसामासयभावेणेदस्स पयट्टत्तादो। एवं सेसाणं । सुगमं । उच्चारणाहिप्पाएण सणियासो णस्थि त्ति, तत्थ सत्तारसण्हमेवाणिओगद्दाराणं परूवणादो। जयध. अ. प. १७६३-६४.
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