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________________ उवककमाणुयोगदारे मोहणीय उदीरणढाणपरूवणा थोवा । सादस्स उदीरया संखेज्जगुणा। एइंदिएसु सादस्स उदीरया थोवा, असादस्स उदीरया संखेज्जगुणा। उवरि उवदेसं लहियं वत्तव्वं। परत्थाणप्पाबहुगं जाणिय वत्तव्वं । एवमप्पाबहुअं समत्तं । भुजगार-पदणिक्खेवो वड्ढीयो पत्थि, एगेगपयडिविक्वखत्तादो। एत्तो उदीरणट्ठाणपरूवणा कीरदे- णाणावरणीयस्स उदीरणाए एक्कं चेव ट्ठाणं । एत्थ ( सामित्तं ) णाणाजीवेहि भंगविचओ कालो अंतरं अप्पाबहुअं च परूवेयव्वं । णाणावरणीयस्स हाणपरूवणा समत्ता । दसणावरणीयस्स दुवे द्वाणाणि चदुण्णमुदीरणा पंचण्णमुदीरणा चेदि । एदेसि टाणाणं सामित्तं णाणाजीवेहि भंगविचओ। कालो अंतरमप्पाबहुअंच कायव्वं । एवं दंसणावरणस्स टाणउदीरणा समत्ता। वेयणीयस्स णत्थि ट्ठाणउदीरणा। मोहणीयस्स ट्ठाणउदीरणाए अत्थि एक्किस्से पवेसओ, दोण्णं पवेसमो, तिण्णं पवेसओ णत्थि, चदुण्णं पवेसओ अत्थि। एत्तो पाए णिरंतरं जाव दसणं पवेसओ त्ति वत्तव्वं । एक्किस्से पवेसयस्स चत्तारि भंगा। तं जहा- कोधसंजलणस्स उदएण एगो भंगो, माणसंजलणस्स उदएण बिदियो भंगो, मायातंजलणस्स उदएण तिण्णि भंगा, लोभस्स उदएण चत्तारि भंगा। दोण्णं पवेसयस्स बारस भंगा। चदुग्ण पदेसयस्स चदुवीसभंगा। पंचण्णं पवेसयस्स चत्तारि चउवीसभंगा। असाताके उदीरक स्तोक और साताके उदीरक उनसे संख्यातगुणे हैं । एकेन्द्रिय जीवोंमें साताके उदीरक स्तोक और असाताके उदीरक उनसे संख्यातगुणे हैं। आगे उपदेशको प्राप्तकर कथन करना चाहिये । परस्थान अल्पवहुत्वकी जानकर प्ररूपणा करना चाहिये । इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धि अनुयोगद्वार यहां नहीं हैं; क्योंकि, एक एक प्रकृतिकी विवक्षा है । __ आगे यहां उदीरणास्थानोंकी प्ररूपणा की जाती है- ज्ञानावरणीयकी उदीरणाका एक ही स्थान है। यहां स्वामित्व, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर और अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करना चाहिये । ज्ञानावरणीयकी स्थानप्ररूपणा समाप्त हई। दर्शनावरणीयके दो स्थान हैं- चारकी उदीरणाका एक स्थान और पांचकी उदीरणाका एक । इन स्थानोंके स्वामित्व, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर और अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये। इस प्रकार दर्शनावरणकी स्थानउदीरणा समाप्त हुई। वेदनीयकी स्थान उदीरणा नहीं है। मोहनीय की स्थानउदीरणामें एक प्रकृतिका प्रवेशक ( उदीरक ) है, दो प्रकृतियोंका प्रवेशक है, तीन प्रकृतियोंका प्रवेशक नहीं है, चार प्रकृतियोंका प्रवेशक है। चार प्रकृतियोंके प्रवेशकको आदि करके दस प्रकृतियोंके प्रवेशक तक इन स्थानोंका प्रवेशक निरन्तर है। इनमें एक प्रकृतिके प्रवेशकके चार भंग हैं। वे इस प्रकार हैं- संज्वलन क्रोधके उदयकी अपेक्षा एक भंग, संज्वलन मानके उदयकी अपेक्षा द्वितीय भंग, संज्वलन मायाके उदयकी अपेक्षा तृतीय भंग, और संज्वलन लोभके उदयकी अपेक्षा चतुर्थ भंग। दो प्रकृतियोंके प्रवेशकके बारह भंग होते हैं। चार प्रकृतियोंके प्रवेशकके चौबीस भंग होते हैं । पांच प्रकृतियोंके 8 जयध (चू. सू. ) अ. प. ७५६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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