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________________ ८० ) छक्खंडागमे संतकम् उदीरओ, विरोहाभावादो । आदावमुदीरेंतो उज्जोवस्स णियमा अणुदीरओ, उज्जोवमदीरेंतो आदावस्स णियमा अणुदीरओ। णिरयगइ-मणुसगईओ वेदंतो उज्जोवस्स णियमा अणुदीरओ । देवगई वेदंतो मूलसरीरेण उज्जोवस्स अणुदीरओ। आदावस्स पुढविजीवो चेव अदीरगो, ण अण्णो। उच्चगोदमुदीरेंतो णीचागोदस्स णियमा अणुदीरगो । एवं णीचागोदस्स । सेसं जाणियूण वत्तव्वं । एवं सत्थाणसणियासो समत्तो । परत्थाणसण्णियासो जाणियूण वत्तव्यो । एवं सण्णियासो समत्तो। अप्पाबहुअं दुविहं-- सत्थाणप्पाबहुअं परत्थाणप्पाबहुअं चेदि । सत्थाणे पयदं-पंचविहस्स णाणावरणस्स तुल्ला उदोरया । थीणगिद्धीए उदीरया0 थोवा । णिद्दाणिद्दाए उदीरया संखेज्जगुणा, पयलापयलाए उदीरया संखेज्जगुणा, णिद्दाए उदीरया संखेज्जगुणा, पयलाए उदीरया संखेज्जगुणा, सेसचदुण्णं दंसणावरणीया-- णमुदीरया तुल्ला संखेज्जगुणा।। सादस्स उदीरया थोवा, असादस्स उदीरया संखेज्जगुणा। णिरयगईए सादस्स उदीरया थोवा, असादस्स उदीरया असंखेज्जगुणा । सेसेसु तसेसु असादस्स उदीरया किसी एककी उदीरणा करनेवाला शेष भेदोंका कदाचित् उदीरक होता है, क्योंकि, इसमें कोई विरोध नहीं है। आतपकी उदीरणा करनेवाला उद्योतका नियमसे अनदीरक और उद्योतकी उदीरणा करनेवाला आतपका नियमसे अनदीरक होता है। नरकगति व मनष्यगतिका वेदन करनेवाला उद्योतका नियमसे अनुदीरक होता है । वेवगतिका वेदन करनेवाला मल शरीरसे उद्योतका अनुदीरक होता है । आतपका उदीरक पृथिवीकायिक जीव ही होता है, अन्य नहीं होता। उच्चगोत्रकी उदीरणा करनेवाला नीचगोत्रका नियमसे अनुदीरक होता है । इसी प्रकार नीचगोत्रके आश्रयसे कहना चाहिये। शेष कथन जानकर करना चाहिये । इस प्रकार स्वस्थान संनिकर्ष समाप्त हुआ। परस्थान संनिकर्षकी प्ररूपणा जानकर करना चाहिये। इस प्रकार संनिकर्ष समाप्त हुआ। अल्पबहुत्व दो प्रकार है- स्वस्थान अल्पबहुत्व और परस्थान अल्पबहुत्व। इनमें स्वस्थान अल्पबहुत्व प्रकृत है--पांच प्रकार ज्ञानावरणकी उदीरणा करनेवाले परस्परमें समान हैं। स्त्यानगद्धिके उदीरक जीव स्तोक हैं, उनसे निद्रानिद्राके उदीरक संख्यातगुणे हैं, उनसे प्रचलाप्रचलाके उदीरक संख्यातगुणे हैं, उनसे निद्राके उदीरक संख्यातगुणे हैं, उनसे प्रचलाके उदीरक संख्यातगुणे हैं, उनसे शेष चार दर्शनावरणीय प्रकृतियोंके उदीरक परस्परमें तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। सातावेदनीयके उदीरक स्तोक हैं, असाताके उदीरक उनसे संख्यातगुणे हैं। नरकगतिमें साताके उदीरक स्तोक हैं, असाताके उदीरक उनसे असंख्यातगुणे हैं। शेष त्रस जीवोंमें काप्रती उदीरए' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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