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________________ ७८ ) छक्खंडागमे संतकम्म कोधसंजलणमुदीरेंतो तिविहदसणमोहणीयं सिया उदीरेदि । अणंताणुबंधिअपच्चक्खाण-पच्चक्खाणाणं सिया उदीरओ, जदि उदीरओ तो एदेसि कोधाण णियमा उदीरओ, सेसवारसण्णं कसायाणं णियमा अणुदीरओ। तिण्णं वेदाणं सिया उदीरओ, तिण्णं वेदाणमेक्कदरस्स वि सिया उदीरगो । हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं सिया उदीरगो, दोण्णं जुगलाणमेक्कदरस्स (वि) सिया उदीरओ*, भय-दुगुंछाणं सिया उदीरओ । एवं सेसतिण्णं कसायाणं संजलणाणं वत्तव्वं ।। पुरिसवेदमुदीरेंतो दंसणमोहणीयं सिया उदीरेदि । अणंताणुबंधि-अपच्चक्खाण. पच्चक्खाणकसायाणं सिया उदीरओ। संजलणाए णियमा उदीरओ। उदीरेंतो वि सोलसण्हं कसायाणं पि सिया उदीरओ। इत्थि-णवंसयवेदाणं णियमा अणुदीरओ। हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं सिया उदीरओ, दोण्णं जुअलाणं पि सिया उदीरओ। भयदुगुंछाणं सिया उदीरओ । एवमित्थि-णवंसयवेदाणं पि वत्तव्वं । हस्समुदीरेंतो रदीए णियमा उदीरओ। अरदि-सोगाणं णियमा अणुदीरओ । दसणतिय-सोलसकसाय-तिण्णिवेद-भय-दुगुंछाणं सिया उदीरओ । रदिमुदीरेंतो हस्सस्स णियमा उदीरओ। सेसं हस्सभंगो। अरदिमुदीरेंतो सोगस्स णियमा उदीरओ । हस्स संज्वलन क्रोधकी उदीरणा करनेवाला तीन प्रकारके दर्शनमोहनीयकी कदाचित् उदीरणा करता है। अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान कषायोंका वह कदाचित् उदीरक होता है । यदि उदीरक होता है तो इनके क्रोधोंका नियमसे उदीरक होता हुआ शेष बारह कषायोंका नियमसे अनुदीरक होता है। तीन वेदोंका कदाचित् उदीरक होकर उन तीनोंमेंसे किसी एक वेदका भी कदाचित् उदीरक होता है। हास्य-रति व अरति-शोकका कदाचित् उदीरक होकर दोनों युगलोंमेंसे किसी एकका भी कदाचित् उदीरक होता है। भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है। इसी प्रकार मान आदि शेष तीन संज्वलन कषायोंके आश्रयसे प्ररूपणा करना चाहिये । पुरूषवेदकी उदीरणा करनेवाला तीन दर्शनमोहनीयकी कदाचित् उदीरणा करता है। अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण कषायोंका कदाचित् उदीरक होता है । संज्वलनका नियमसे उदीरक होता है । उदीरणा करता हुआ भी वह सोलह कषायोंका भी कदाचित् उदीरक होता है । स्त्री और नपुंसक वेदोंका वह नियमसे अनुदीरक है । हास्य-रति और अरति-शोकका कदाचित् उदीरक होता हुआ दोनों युगलोंका भी कदाचित् उदीरक होता है । भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है । इसी प्रकार स्त्री और नपुंसक वेदोंके आश्रयसे भी प्ररूपणा करना चाहिए। हास्यकी उदीरणा करनेवाला रतिका नियमसे उदीरक होता है। अरति और शोकका निय-- मसे अनुदी रक होता है । तीन दर्शनमोहनीय, सोलह कषाय, तीन वेद, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है। रतिको उदीरणा करनेवाला हास्यका नियमसे उदीरक होता है। शेष कथन हास्यके समान है । अरतिकी उदीरणा करनेवाला शोकका नियमसे उदीरक होता है । हास्य व * प्रत्योरुभयोरेव ‘णियमा उदीरओ' इति पाठः। 0 काप्रती 'हस्स'ताप्रती 'हस्सं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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