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उवक्कमाणुयोगद्दारे उत्तरपयडिउदीरणाए सत्थाणसंणियासो
(७७
अणंताणुबंधिकोधस्स सिया उदीरओ, अणंताणुबंधिसेसीकसायाणं णियमा अणुदीरगो। पच्चक्खाणकोधस्स संजलणकोधस्स णियमा उदीरओ। सेसाणं णवण्णं कसायाणं णियमा अणुदीरओ। तिण्णं वेदाणं सिया उदीरओ, तिण्णं वेदाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ। हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं सिया उदीरओ, दोणं जुगलाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ । भय-दुगुंछाणं सिया उदीरओ । एवं सेसतिण्णं कसायाणं।
पच्चक्खाणकसायस्स कोधमुदीरेंतो तिविहं दंसणमोहणीयं सिया उदीरेदि । अणंताणुबंधिं पि सिया उदीरेदि, जदि उदीरेदि तो कोधं णियमा उदीरेदि, सेसतिविहअणंताणुबंधीणं णियमा अणुदीरओ । अपच्चक्खाणकसायस्स सिया उदीरओ, जदि उदीरओ तो णियमा कोधमुदीरेदि, तस्सेव सेसकसायाणमुदीरओ । पच्चक्खाणस्स सेसतिण्णं कसायाणं णियमा अणुदीरओ। कोधसंजलणस्स णियमा उदीरओ, सेससंजलणाणमणुदीरगो। तिण्णं वेदाणं सिया उदीरओ, तिण्णं वेदाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ। हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं सिया उदीरओ, दोगं जुगलाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ। भय-दुगुंछाणं सिया उदीरओ। एवं सेसपच्चक्खाणकसायाणं वत्तव्वं । उदीरणा करता है। अनन्तानुबन्धी क्रोध का कदाचित् उदीरक होता है, शेष अनन्तानुबन्धी मान आदि कषायोंका वह नियमसे अनुदीरक होता है। प्रत्याख्यान क्रोध और संज्वलन क्रोधका नियमसे उदीरक होता है । अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन मान, माया एवं लोभ इन शेष नौ कषायोंका नियमसे अनुदीरक होता है। तीन वेदोंका कदाचित् उदीरक होकर वह उक्त तीन वेदोंमेंसे किसी एकका नियमसे उदीरक होता है । हास्य-रति और अरतिशोकका कदाचित उदोरक होकर इन दो यगलोंमेंसे किसी एकका नियमसे उदीरक होता है। भय और जुगुप्साका वह कदाचित् उदीरक होता है। इसी प्रकारसे अप्रत्याख्यान मान आदि शेष तीन कषायोंके आश्रयसे प्ररूपणा करना चाहिये।
प्रत्याख्यान कषायके क्रोधकी उदीरणा करनेवाला तीन प्रकारके दर्शनमोहकी कदाचित् उदीरणा करता है। अनन्तानुबन्धीकी भी कदाचित् उदीरणा करता है। यदि उसकी उदीरणा करता है तो क्रोधकी नियमसे उदीरणा करता है । शेष तीन प्रकार अनन्तानुबन्धी कषायोंका नियमसे अनुदीरक होता है । वह अप्रत्याख्यान कषायका कदाचित् उदीरक होता है। यदि उदीरक होता है तो नियमसे क्रोधकी उदीरणा करता है, उसीकी शेष कषायोंक वह अनुदीरक होता है। प्रत्याख्यानकी शेष तीन कषायोंका वह नियमसे अनुदीरक होता है। संज्वलन क्रोधका नियमसे उदी रक होकर वह शेष संज्वलन कषायोंका नियमसे अनुदीरक होता है। तीन वेदोंका कदाचित् उदीरक होकर उक्त तीन वेदोंमेंसे किसी एकका नियमसे उदीरक होता है। हास्य-रति और अरति-शोकका कदाचित् उदीरक होकर इन दो युगलोंमेंसे किसी एक युगलका नियमसे उदीरक होता है। भय और जुगुप्साका वह कदाचित् उदीरक होता है। इसी प्रकारसे मान आदि शेष प्रत्याख्यान कषायोंके आश्रयसे प्ररूपणा करना चाहिये।
9 उभयोरेव प्रत्यो: 'अणंताणुबंधिविसेस-' इति पाठः । ४ उभयोरेव प्रत्योः ‘सेसरंजलणाणमुदीरगो' इति पाठः।
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