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छक्खंडागमे संतकम्म
अपच्चक्खाण-पच्चक्खाण-संजलणक सायाणं णियमा उदीरओ, तेसि बारसण्णं पयडीणं सिया उदीरओ। तिण्णं वेदाणं सिया उदीरओ, तिण्णं वेदाणं एक्कदरस्स णियमा उदीरगो। हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं सिया उदीरओ, दोण्णं जुगलाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ। भय-दुगुंछाणं सिया उदीरओ।
____ अणंताणुबंधिकोधमुदीरेंतो सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमणुदीरओ । मिच्छत्तस्स सिया उदीरओ सिया अणुदीरओ, उदयावलियं पविटुमिच्छत्तपढमट्टिदिमिच्छाइटिस्स सासणस्स च उदयाभावादो। अपच्चक्खाण-पच्चक्खाण-सजलणाणं तिण्णं कोहाणं णियमा उदीरओ, सेसाणं बारसणं कसायाणं णियमा अणुदीरओ। तिण्णं वेदाणं सिया उदीरगो, तिण्णं वेदाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ। हस्स-रदिअरदि-सोगाणं सिया उदीरओ। दोण्णं जुगलाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ। भयदुगुंछाणं सिया उदीरओ। एवमणंताणुबंधिमाण-माया लोहाणं वत्तव्वं । णवरि माणे उदीरिज्जमाणे चदुण्णं माणाणं, मायाए उदीरिज्जमाणाए चदुण्णं मायाणं, लोभे उदीरिज्जमाणे चदुण्णं लोभाणं णियमा उदीरणा होदि त्ति वत्तव्वं ।
अपच्चक्खाणकसायस्स कोधमुदीरेंतो तिविहं दंसणमोहणीयं सिया उदीरेदि ।
नियमसे अनुदीरक होता है । अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन कषायोंका नियमसे उदीरक होता है । किन्तु इनकी बारह प्रकृतियोंका वह कदाचित् उदीरक होता है। तीन वेदोंका कदाचित् उदीरक होकर वह उक्त तीन वेदोंमेंसे किसी एकका नियमसे उदीरक होता है। हास्य, रति, अरति व शोकका कदाचित् उदीरक होकर इन दो युगलोंमेंसे किसी एकका नियमसे उदीरक होता है । भय व जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है।
अनन्तानुबन्धी क्रोधकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्व व सम्यग्मिथ्यात्वका अनुदीरक होता है । वह मिथ्यात्वका कदाचित् उदीरक व कदाचित् अनुदीरक होता है, क्योंकि, उदयावलीमें प्रविष्ट हुए मिथ्यात्वकी प्रथम स्थिति युक्त मिथ्यादृष्टिके और सासादनसम्यग्दृष्टिके उसका उदय सम्भव नहीं है । वह अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन इन तीन क्रोध कषायोंका नियमसे उदीरक होता है । शेष बारह कषायोंका नियमसे अनुदीरक होता है। तीन वेदोंका कदाचित् उदीरक होकर उक्त तीन वेदोंमेंसे किसी एकका नियमसे उदीरक होता है। हास्य-रति और अरति-शोकका कदाचित् उदीरक होकर दोनों युगलोंमेंसे किसी एक युगलका नियमसे उदीरक होता है। भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान, माया और लोभके आश्रयसे कयन करना चाहिये । विशेष इतना है कि मानकी उदीरणाके समय चार मान कषायोंकी, मायाको उदीरणाके समय चार माया कषायोंकी, और लोभकी उदीरणाके समय चार लोभ कषायोंकी नियमसे उदीरणा होती है। ऐसा कहना चाहिये ।
अप्रत्याख्यान कषायके क्रोधकी उदीरणा करनेवाना तीन प्रकारके दर्शनमोहकी कदाचित्
* काप्रतौ ' संजुलण' इति पाठः ।
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