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________________ ७६ ) छक्खंडागमे संतकम्म अपच्चक्खाण-पच्चक्खाण-संजलणक सायाणं णियमा उदीरओ, तेसि बारसण्णं पयडीणं सिया उदीरओ। तिण्णं वेदाणं सिया उदीरओ, तिण्णं वेदाणं एक्कदरस्स णियमा उदीरगो। हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं सिया उदीरओ, दोण्णं जुगलाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ। भय-दुगुंछाणं सिया उदीरओ। ____ अणंताणुबंधिकोधमुदीरेंतो सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमणुदीरओ । मिच्छत्तस्स सिया उदीरओ सिया अणुदीरओ, उदयावलियं पविटुमिच्छत्तपढमट्टिदिमिच्छाइटिस्स सासणस्स च उदयाभावादो। अपच्चक्खाण-पच्चक्खाण-सजलणाणं तिण्णं कोहाणं णियमा उदीरओ, सेसाणं बारसणं कसायाणं णियमा अणुदीरओ। तिण्णं वेदाणं सिया उदीरगो, तिण्णं वेदाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ। हस्स-रदिअरदि-सोगाणं सिया उदीरओ। दोण्णं जुगलाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ। भयदुगुंछाणं सिया उदीरओ। एवमणंताणुबंधिमाण-माया लोहाणं वत्तव्वं । णवरि माणे उदीरिज्जमाणे चदुण्णं माणाणं, मायाए उदीरिज्जमाणाए चदुण्णं मायाणं, लोभे उदीरिज्जमाणे चदुण्णं लोभाणं णियमा उदीरणा होदि त्ति वत्तव्वं । अपच्चक्खाणकसायस्स कोधमुदीरेंतो तिविहं दंसणमोहणीयं सिया उदीरेदि । नियमसे अनुदीरक होता है । अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन कषायोंका नियमसे उदीरक होता है । किन्तु इनकी बारह प्रकृतियोंका वह कदाचित् उदीरक होता है। तीन वेदोंका कदाचित् उदीरक होकर वह उक्त तीन वेदोंमेंसे किसी एकका नियमसे उदीरक होता है। हास्य, रति, अरति व शोकका कदाचित् उदीरक होकर इन दो युगलोंमेंसे किसी एकका नियमसे उदीरक होता है । भय व जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्व व सम्यग्मिथ्यात्वका अनुदीरक होता है । वह मिथ्यात्वका कदाचित् उदीरक व कदाचित् अनुदीरक होता है, क्योंकि, उदयावलीमें प्रविष्ट हुए मिथ्यात्वकी प्रथम स्थिति युक्त मिथ्यादृष्टिके और सासादनसम्यग्दृष्टिके उसका उदय सम्भव नहीं है । वह अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन इन तीन क्रोध कषायोंका नियमसे उदीरक होता है । शेष बारह कषायोंका नियमसे अनुदीरक होता है। तीन वेदोंका कदाचित् उदीरक होकर उक्त तीन वेदोंमेंसे किसी एकका नियमसे उदीरक होता है। हास्य-रति और अरति-शोकका कदाचित् उदीरक होकर दोनों युगलोंमेंसे किसी एक युगलका नियमसे उदीरक होता है। भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान, माया और लोभके आश्रयसे कयन करना चाहिये । विशेष इतना है कि मानकी उदीरणाके समय चार मान कषायोंकी, मायाको उदीरणाके समय चार माया कषायोंकी, और लोभकी उदीरणाके समय चार लोभ कषायोंकी नियमसे उदीरणा होती है। ऐसा कहना चाहिये । अप्रत्याख्यान कषायके क्रोधकी उदीरणा करनेवाना तीन प्रकारके दर्शनमोहकी कदाचित् * काप्रतौ ' संजुलण' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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