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________________ ६८ ) छक्खंडागमे संतकम्म समत्तो । आदेसो जाणियूण वत्तव्यो । एवं कालो समत्तो । एयजीवेण अंतरं--पंचणाणावरणीय-चदुदंसणावरणीय-तेजा-कम्मइयसरीरवण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-थिराथिर-सुहासुह-णिमिण-पंचंतराइयाणमुदीरणाए अंतरं णत्थि, धुवोदयत्तादो। णिद्दा-पयलाणमंतरं जहण्णमुक्कस्सं पि अंतोमुहुत्तं । णिद्दाणिद्दा-पयलापयला-थीणगिद्धीणमंतरं जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि साहियाणि अंतोमुहुत्तेण । सादस्स जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि । सादस्स गदियाणुवादेण जहण्णमंतरमंतोमुत्तं, उक्कस्सं पि अंतोमुहुत्तं चेव । असादस्स जहण्णमंतरमेगसमओ, उक्कस्सेण छम्मासा। मणुसगदीए असादस्स उदीरणंतरं जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । मिच्छत्तस्स जहण्णमंतरं अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण बेछावट्ठिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जहण्णमंतरं अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण उवड्ढपोग्गलपरियढें देसूणं । अणंताणुबंधीणं जहण्णमंतरं अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण बेछावढिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । अपच्चक्खाणकसायाणं जहण्णमंतरं अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा। एवं चेव पच्चक्खाणावरणीयचदुक्कस्स वत्तव्वं । कोह-माण-मायासंजलणाणं है। इस प्रकार ओघानुगम समाप्त हुआ। आदेशका कथन जानकर करना चाहिये । इस प्रकार काल समाप्त हुआ। ___ एक जीवकी अपेक्षा अन्तर--पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, निर्माण और पांच अन्तराय' ; इनकी उदीरणाका अन्तर नहीं होता, क्योंकि, ये ध्रुवोदयी प्रकृतियां हैं। निद्रा और प्रचलाकी उदीरणाका अन्तरकाल जघन्य व उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त मात्र है । निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धिका वह अन्तरकाल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे अन्वर्मुहूर्तसे अधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण है । सातावेदनीयकी उदीरणाका अन्तरकाल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे साधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण है । गतिके अनुवादसे सातावेदनीयकी उदीरणाका अन्तरकाल जघन्य व उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त ही है । असातावेदनीयका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट छह मास प्रमाण है । मनुष्यगतिमें असाताकी उदीरणाका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । मिथ्यात्वका जघन्य उदीरणा-अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक दो छयासठ सागरोपम प्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका वह अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ कम उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है । अनन्तानुबन्धी कषायोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक दो छयासठ सागरोपम काल प्रमाण है । अप्रत्याख्यान कषायोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण है। इसी प्रकार ही प्रत्याख्यानावरणीयचतुष्कके अन्तरका कथन करना चाहिये । संज्वलन क्रोध, मान और मायाका जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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