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उवक्कमाणुयोगद्दारे उत्तरपयडिउदीरणाए एगजीवेण कालो ( ६७ अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो। जसगित्ति-सुभगादेज्जणामाणं जहण्णण एगसमओ उत्तरविउव्वणाए कालं करेंतस्स, उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं । अजसगित्ति-दूभग-अणादेज्जणामाणं जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण अजसगित्तीए असंखेज्जा लोगा, दूभगअणादेज्जाणं असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा। कधमेगसमओ ? अजसकित्तिमुदीरयमाणो संजदो जादो, ताधे जसगित्ती उदयमागदा, पुणो अंतोमुहत्तेण सासणं गदो, तत्थ अजसगित्तीए उदीरणाबिदियसमए मुदो, तस्स एगसमओ लब्भइ। उत्तरविउवणाए वि लब्भदे। एवं दूभग-अणादेज्जाणं पि वत्तव्वं, परियट्टमाणउदयत्तादो।
तित्थयरणामाए जहण्णेण वासपुधत्त, उक्कस्सेण पुवकोडी देसूणा। णीचागोदस्स जहण्णण एगसमओ, उच्चागोदादो णीचागोदं गंतूण तत्थ एगसमयमच्छिय बिदियसमए उच्चागोदे उदयमागदे एगसमओ लब्भदे । उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । उच्चागोदस्स जहण्णेण एयसमओ, उत्तरसरीरं विउव्विय * एगसमएण मुदस्स तदुवलंभादो। एवं णीचागोदस्त वि। उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं । एवमोघाणुगमो
साधारण नामकर्मोका अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। यशकीर्ति, सुभग और आदेय नामकर्मोंका उदीरणाकाल उत्तर विक्रियासे मृत्युको प्राप्त होनेवाले जीवके जघन्यसे एक समय मात्र है, उत्कर्षसे वह सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण है। अयशकीर्ति, दुर्भग और अनादेय नामकर्मोका उदीरणाकाल जघन्यसे एक समय मात्र है। उत्कर्षसे वह अयशकीर्तिका असंख्यात लोक तथा दुर्भग व अनादेयका असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है।
शंका-- इनका जघन्य उदीरणाकाल एक समय मात्र कैसे है ?
समाधान-- अयशकीर्तिकी उदीरणा करनेवाला जीव संयत हो गया, उस समय उसके यशकीर्तिका उदय हुआ, फिर वह अन्तर्मुहुर्तमें सासादन गुणस्थानको प्राप्त हुआ, वहां अयशकीर्तिकी उदीरणाके द्वितीय समयमें मृत्युको प्राप्त हुआ, उसके अयशकीर्तिका उदीरणाकाल एक समय पाया जाता है। यह काल उत्तर विक्रियासे भी पाया जाता है। इसी प्रकार दुर्भग व अनादेय नामकर्मोंके भी एक समयरूप उदीरणाकालका कथन करना चाहिये, क्योंकि, ये परिवर्तमान उदयवाली प्रकृतियां हैं।
तीर्थकर नामकर्मका उदीरणाकाल जघन्यसे वर्षपृथक्त्व और उत्कर्षसे कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण है। नीचगोत्रका उदीरणाकाल जघन्यसे एक समय मात्र है, क्योंकि. उच्चगोत्रसे नीचगोत्रको प्राप्त होकर वहां एक समय रहकर द्वितीय समयमें उच्चगोत्रका उदय होनेपर एक समय उदीरणाकाल पाया जाता है। उत्कषसे वह असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण हैं । उच्चगोत्रका उदीरणाकाल जघन्यसे एक समय मात्र है, क्योंकि, उत्तर शरीरकी विक्रिया करके एक समयम मत्यको प्राप्त हुए जीवके उक्त काल पाया जाता है। नीचगोत्रका भी जघन्य काल एक समय मात्र इसी प्रकारसे घटित होता है। उच्चगोत्रका उत्कृष्ट काल सागरोपमशतपथक्त्व प्रमाण
४ मप्रतिपाठोऽयम्, का-ताप्रत्योः ' एगसमओ उक्क. उत्तरविउठवणाए काल करेंतस्स सागरोबम ' इति
पाठः। 0 प्रत्योरूमयोरेव ' उदयमागदो' इति पाठः। * काप्रती 'विउविद' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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