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उवक्कमाणुयोगद्दारे उत्तरपयडिउदीरणाए एगजीवेण अंतरं
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जहण्णमंतरं अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पि अंतोमुहुत्तं । लोहसंजलणाए* जहण्णमंतरं एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । जहा सादस्स तहा हस्स-रदीणं वत्तव्वं । जहा असादस्स तहा अरदि-सोगाणं वत्तव्वं । भय-दुगुंछाणमंतरं जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । कध एगसमओ ? चरिमसमयणियट्टिभयवेदगो से काले अणियट्टिगुणं पविठ्ठो अवेदगो जादो, तदो से काले मदो देवो जादो भयं चेव वेदेदि, एवं भयवेदगस्स एगसमयमंतरं । एवं दुगुंछाए । पुरिसवेदस्स* उदीरणंतरं जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । इत्थि-णवंसयवेदाणं जहण्णमंतरं अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सं णवंसयवेदस्स सागरोवमसदपुधत्तं, इत्थिवेदस्स असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा।
देव-णिरयाउआणमुदीरणंतरं जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । तिरिक्खाउअस्स जहण्णेण अन्तरमावलिया, उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं । एवं मणुस्साउअस्स वि । णवरि उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा।
अन्तर अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहर्त मात्र है । संज्वलन लोभका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । जिस प्रकार साता वेदनीयके अन्तरकी प्ररूपणा की गई है है उसी प्रकारसे हास्य व रतिके अन्तरकी प्ररूपणा करनी चाहिये। जिस प्रकार असातावेदनीयके अन्तरका कथन किया है उसी प्रकारसे अरति और शोकके अन्तरका कथन करना चाहिये । भय और जुगुप्साका अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है ।
शंका-- उनकी उदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय कैसे है ?
समाधान-- भयका वेदक अन्तिम समयवर्ती अपूर्वकरण अनन्तर समयमें अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमें प्रविष्ट होकर उसका अवेदक हुआ । पश्चात् अनन्तर समयमें मृत्युको प्राप्त होकर देव हुआ । वह उस समय भयका ही वेदन करता है । इस प्रकारसे भयका वेदन करनेवाले उक्त जीवके एक समय अन्तर पाया जाता है । इसी प्रकार जुगुप्साके भी उपर्युक्त एक समय मात्र अन्तरका कथन करना चाहिये ।
पुरुषवेदकी उदौरणाका अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है। स्त्री और नपुंसक वेदोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहुर्त प्रमाण है । उत्कृष्ट अन्तर नपुंसकवेदका सागरोपमशतपृथक्त्व और स्त्रीवेदका असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है।
देव व नारक आयुओंकी उदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्तर्महर्त और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन है । तिर्यंच आयुका अन्तर जघन्यसे एक आवली और उत्कर्षसे सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण है । इसी प्रकारसे मनुष्यायुके भी अन्तरका कथन करना चाहिये । विशेष इतना है कि उसका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है ।
. प्रत्योरुभयोरेव 'लोइसंजलणाणं' इति पाठः । 0 प्रत्योरुभयोरेव 'अणियट्रिभयवेदगो' ति पाठः ।
* काप्रतौ 'पुरिसवेदयस्स ' इति पाठः। Jain Education International
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