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________________ ५, ६.९०. ) बंधणाणुयोगद्दारे पत्तेयसरी रदव्ववग्गणा ( ६५ अनंतगुणा । को गुणगारो ? सव्वजीवेहि अनंतगुणो । एसा पण्णारसमी वग्गणा १५ । एसा वि अगहणवग्गणा चेव, आहार-तेजा-भासा-मण-कम्माणमजोगत्तादो । सांतरणिरंतरदव्ववग्गणाणमुवरि धुवसुण्णवग्गणा नाम ॥ ९० ॥ अदीदाणादट्टमाणकालेसु एदेण सरूवेण परमाणुपोग्गलसंचयाभावादो धुवसुण्णदव्ववग्गणा त्ति अत्थाणुगया सण्णा । संपहि उक्कस्सांतरणिरंत रदव्ववग्गगाए उवरि परमाणुत्तरो परमाणुपोग्गलक्खंधो तिसु वि कालेसु णत्थि । दुपदेसुत्तरो वि णत्थि । एवं तिपदेसुत्तरादिकमेण सव्वजीवेहि अनंतगुणमेत्तमद्वाणं गंतूण पढमधुवसुण्णवग्गणाए उक्कस्वग्गणा होदि । सगजहण्णवग्गणादो सगुक्कस्सिया वग्गणा अनंतगुणा । को गुणगारो ? सव्वजीवेहि अनंतगुणो । एसा सोलसमी वग्गणा १६ सव्वकालं सुण्णभावेण अवद्विदा । धुव सुण्णदव्ववग्गणाणमुवरि पत्तेयसरीरदव्ववग्गणा णाम । ९१ | एक्क्स्स जीवस्स एक्कम्हि देहे उवचिदकम्म णोकम्मक्खंधो पत्तेयसरीरदव्ववग्गणा णाम । संपहि उक्कस्सधुवसुण्णदव्ववग्गणाए उवरि एगरूवे पविखत्ते सव्वजहणिया पत्तेयसरीरदव्ववग्गणा होदि । एसा जहणिया पत्तेयसरीरदव्ववग्गणा कस्स होदि ? जो जोवो सुहुमणिगोदअपज्जत्तएसु पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेग अपनी उत्कृष्ट वर्गणा अनन्तगुणी है । गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है । यह पन्द्रहवीं वर्गणा है । १५ । यह भी अग्रहणवर्गणा ही है; क्योंकि, यह आहार, तैजस, भाषा, मन और कर्मके अयोग्य है । सान्तर निरन्तरद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर ध्रुवशून्यवर्गणा है ।। ९० । अतीत, अनागत और वर्तमान काल में इस रूपसे परमाणु पुद्गलों का संचय नहीं होता, इसलिये इसकी ध्रुवशून्यद्रव्यवर्गणा यह सार्थक संज्ञा है । उत्कृष्ट सान्तरनिरन्तर द्रव्यवर्गणा के ऊपर एक परमाणु अधिक परमाणुपुद्गलस्कन्ध तीनों ही कालोंमें नहीं होता, दो प्रदेश अधिक भी नहीं होता, इस प्रकार तीन प्रदेश अधिक आदिके क्रमसे सब जीवोंसे अनन्तगुणे स्थान जाकर प्रथम ध्रुवशून्यवर्गणासम्बन्धी उत्कृष्ट वर्गणा होती है । यह अपनी जघन्य वर्गणा से अपनी उत्कृष्ट वर्गणा अनन्तगुणी है । गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है । यह सोलहवीं वर्गणा है | १६ | जो सर्वदा शून्यरूपसे अवस्थित है | ध्रुवशून्यद्रव्यवर्गणाओं के ऊपर प्रत्येकशरीरद्रव्यवर्गणा है ॥ ९१ ॥ एक एक जीवके एक एक शरीर में उपचित हुए कर्म और नोकर्मस्कन्धों की प्रत्येकशरीर द्रव्यवर्गणा संज्ञा है । अब उत्कृष्ट ध्रुवशून्य द्रव्यवर्गणा में एक अंकके मिलाने पर जघन्य प्रत्येकशरीर द्रव्यवर्गणा होती हैं । शंका- यह जघन्य प्रत्येकशरीरद्रव्यवर्गणा किसके होती है ? समाधान- जो जीव सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तकों में पल्यका असंख्यातवां माग कम कर्मस्थिति श्र. आ . प्रत्यो ' - कालसुण्णभावेण इति पाठः । 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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