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६४ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
( ५, ६, ८९. एसो धुवक्खंधणिद्देसो अंतदोवओ । तेण हेट्रिमसव्ववग्गणाओ धुवाओ चेव अंतरविरहिदाओ ति घेत्तव्वं । एत्तो पहडि उरि भण्णमाणसव्ववग्गणासु अगहणभावो णिरंतरमणवावेदव्वो। संपहि कम्मइय उक्कस्सवग्गणाए एगरूवे पक्खित्ते जहणिया धवक्खंधदव्यवग्गणा होदि । तदो रूवत्तरकमेण सव्वजोवेहि अणंतगणमेत्तमद्धाणं गंतूणं धुवक्खंधदव्यवग्गणाए उक्कस्सिया वग्गणा होदि । सगजहणणवग्गणादो सगुक्कस्सिया वग्गणा अणंतगुणा । को गुणगारो? सव्वजोवेहि अणंतगुणो। एसा चोद्दसमी वग्गणा १४ । आहार तेजा* भासा मण-कम्मइयवग्गणाओ चेव एत्थ परूवेदव्वाओ, बंधणिज्जत्तादो, ण सेसाओ, तासि बंधणिज्जत्ताभावादो, ण सेसाओ। तासि बंधणिज्जत्ताभावादो ? ण, सेसवग्गणपरूवणाए विणा बंधणिज्जवग्गणार परूवणोवायाभावादो वदिरेगावगमणेण विणा णिच्छिदण्णयपच्चयपत्तीए अभावादो वा।
धुवक्खंधदव्ववग्गणाणमुवरि सांतरणिरंतरदश्ववग्गणा णाम । ८९ । अंतरेण सह णिरंतरं गच्छदि त्ति सांतरणिरंतरदव्ववग्गणासण्णा एदिस्से अत्थाणुगया। संपहि उक्कस्सधुवक्खंधवग्गणाए उवरि एगरूवे पक्खिते जण्णिया सांतरणिरंतरदव्ववग्गणा होदि। तदो रूवुत्तरकमेण सव्वजोवेहि अणंतगुणमेत्तमद्धाणं गंतूण सांतरणिरंतरदश्ववग्गणाए उकस्सवग्गणा होदि । सगजहण्णवग्गणादो सगुक्कस्सवगगा
यह ध्रुवस्कन्ध पदका निर्देश अन्तदीपक है । इससे पिछली सब वर्गणायें ध्रुव ही है अर्थात् अन्तरसे रहित हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । यहांसे लेकर आगे कही जानेवाली सब वर्गणाओंमें अग्रहणपनेकी निरन्तर अनुवृत्ति करनी चाहिए ।
उत्कृष्ट कार्मण वर्गणामें एक अंकके मिलाने पर जघन्य वस्कन्ध द्रव्यवर्गणा होती है । अनन्तर एक एक अधिकके क्रमसे सब जीवोंसे अनन्तगुणे स्थान जाकर ध्रुवस्कन्ध द्वव्यवगणासम्बन्धी उत्कृष्ट वर्गणा होती है। यह अपने जघन्य से अपनी उत्कृष्ट वर्गणा अनन्तगुणी है । गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है । यह चौदहवीं वर्गणा है । १४ ।
शंका-यहाँ पर आहारवर्गणा, तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और कार्मणवर्गणा ही कहनी चाहिये, क्योंकि, वे बन्धनीय हैं। शेष वर्गणायें नहीं कहनी चाहिये, क्योंकि, वे बन्धनीय नहीं हैं ?
___ समाधान-नहीं, क्योंकि, शेष वर्गणाओंका कथन किये बिना बन्धनीय वर्गणाओंके कथन करनेका कोई मार्ग नहीं है । अथवा व्यतिरेकका ज्ञान हुये बिना निश्चित अन्वयके ज्ञान में प्रवृत्ति नहीं हो सकती, इसलिये यहाँ बन्धनीय व अबन्धनीय सब वर्गणाओंका निर्देश किया है।
ध्रुवस्कन्ध द्रव्यवर्गणाओंके ऊपर सान्तरनिरन्तर द्रव्यवर्गणा है ॥ ८९ ।।
जो वर्गणा अन्तरके साथ निरन्तर जाती है उसकी सान्तर-निरन्तर द्रव्यवर्गणा संज्ञा है । यह सार्थक संज्ञा है। उत्कृष्ट ध्रुवस्कन्ध द्रव्यवर्गणामें एक अंकके मिलाने पर जघन्य सान्तरनिरन्तर द्रव्यवर्गणा होती है। आगे एक एक अंकके अधिक क्रमसे सब जीवोंसे अनन्तगुणे स्थान जाकर सान्तर-निरन्तर द्रव्यवर्गणासम्बन्धी उत्कृष्ट वर्गणा होती है । यह अपनी जघन्य वर्गणासे
* ता० अ० प्रत्यो: 'तेज- ' इति पाठः। प्रतिष ‘वि एगबंधणिज्जवग्गणाणं ' इति पाठ: 1
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