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________________ ५ ,६, ८८.) वंधणाणुयोगद्दारे धुवक्खधदव्ववग्गणा मणदव्ववग्गणाणमवरि अगहणदव्ववग्गणा णाम ॥ ८६ ॥ संपहि उक्कस्समगदव्ववग्गणाए उवरि एगरूवे पक्खित्ते चउत्थीए अगहणदव्ववग्गणाए सव्वजहणिया वग्गणा होदि । तदो पदेसुत्तरादिकमेण अभवसिद्धिएहि अणंतगुणं सिद्धाणमणंतभागमेत्तमद्धाणं गंतूण चउत्थअगहणदत्ववग्गणाए उक्कस्सवग्गणा होदि । सगजहण्णवग्गणादो उक्कस्सिया वग्गणा अणंतगुणा। को गुणगारो? अभवसिद्धिएहि अणंतगणो सिद्धाणमणंतिमभागो। एसा बारसमी वग्गणा १२ महणपाओग्गा ण होदि, अप्पाहियपरिमाणत्तादो। अगहणदव्ववग्गणाणमवरि कम्मइयदव्ववग्गणा णाम ॥८७॥ चउत्थीए अगहणदव्ववग्गणाए उकस्सदव्ववग्गणाए उवरि एगरूवे पक्खित्ते सव्वजहणिया कम्मइयसरीरकव्ववग्गणा होदि । तदो पदेसुत्तरादिकमेण अभवसिद्धिएहि अणंतगुणसिद्धाणमणंतभागमेत्तमद्धाणं गंतूण कम्मइयदव्ववग्गणाए उक्कस्सिया वग्गणा होदि । सगजहण्णवग्गणादो सगुक्कस्सिगा वग्गणा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तो विसेसो ? जहण्णकम्मइयवग्गणाए अणंतिमभागो। तस्स को पडिभागो? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतिमभागो। एसा तेरसमी वग्गणा १३ । एदिस्से वग्गणाए पोग्गलवखंधा अट्टकम्मपाओग्गा । कम्मइयदव्ववग्गणाणमुवरि *धुवक्खंधदव्ववग्गणा णाम ॥८८॥ मनोद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर अग्रहण द्रव्यवर्गणा है ॥ ८६ ॥ उत्कृष्ट मनोद्रव्यवर्गणामें एक अंकके मिलाने पर चौथी अग्रहणद्रव्यवर्गणासम्बन्धी सबसे जघन्य वर्गणा होती है। इससे आगे एक एक प्रदेशके अधिक क्रमसे अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण स्थान जाकर चौथी अग्रहण द्रव्यनर्गणासम्बन्धी उत्कृष्ट वर्गणा होती है । यह अपनी जघन्य वर्गणासे उत्कृष्ट वर्गणा अनन्तगुणी है। गुणकार क्या है? अभव्योंसे अनन्तगुण। और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है । यह बारहवीं वर्गणा है । १२ । यह ग्रहणयोग्य नहीं होती है, क्योंकि, यह न्यूनाधिक परिणामवाली है। अग्रहण द्रव्यवर्गणाओंके ऊपर कार्मण द्रव्यवर्गणा है ।। ८७ ।। चौथी अग्रहण द्रव्यवर्गणासम्बन्धी उत्कृष्ट द्रव्यवर्गणामें एक अंकके प्रक्षिप्त करने पर सबसे जघन्य कार्मणशरीर द्रव्यवर्गणा होती है। आगे एक एक प्रदेश अधिकके क्रमसे अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण स्थान जाकर कार्मण द्रव्यवर्गणासम्बन्धी उत्कृष्ट वर्गणा होती है। यह अपनी जघन्य वर्गणासे अपनी उत्कृष्ट वर्गणा विशेष अधिक है । विशेषका प्रमाण कितना है । जघन्य कार्मणवर्गणाके अनन्तवें भागप्रमाण है। इसका प्रतिभाग क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण इसका प्रतिभाग हैं । यह तेरहवीं वर्गणा है । १३ । इस वर्गणाके पुद्गलस्कन्ध आठ कर्मोके योग्य होते हैं। कार्मण द्रव्यवर्गणाओंके ऊपर ध्रुवस्कन्ध द्रव्यवर्गणा है ॥ ८८ ॥ * अ. आ. प्रत्यो: ' -क्खंधादव-' इति पाठ!) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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