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________________ ५, ६, ८३. ) योगद्दारे भासादव्ववग्गणा ( ६१ उक्कस्सिया वग्गणा होदि । सगजहण्णादो सगउक्करसवग्गणा अनंतगुणा । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो एसा अट्ठमी वग्गणा ८ । पंचणं सरीराणं गहण #पाओग्गा ण होदित्ति अगहणवग्गणसण्णिदा । जहण्णादो उक्कस्वग्गणा अनंतगुणे ति कुदो णव्वदे ? अविरुद्धाइरियवयणादो । अगहणदव्ववग्गणाणमुवरि भासावव्ववग्गणा णाम । ८३ । अगहण उक्कस्सदव्ववग्गणाए उवरि एगरूवे पक्खिते सव्वजहणिया मातादव्ववग्गणा होदि । तदो रूवृत्तरकमेण अभवसिद्धिएहि अनंतगुण* सिद्धाणमणंत भागमत्तमद्वाणं गंतून भासादव्ववग्गणाए उक्कस्सिया दव्ववग्गणा होदि । जहण्णादो उक्कस्सा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तो विसेसो ? सगजहण्णवग्गणाए अनंतिमभागो । को पडिभागो ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो । एसा णवमी वग्गणा९ । भासादव्ववग्गणाए परमाणुपोग्गलक्खंधा चदुष्णं भासानं पाओग्गा । पटह - भेरी काहलब्भगज्जणादिसद्दाणं पि एसा चैव वग्गणा पाओग्गा । कधं काहलादिसद्दाणं भासाववएसो ? पहली सर्वजघन्य अग्रहणद्रव्यवर्गणा होती है । फिर आगे एक एक अधिकके क्रमसे अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्तवें भागप्रमाण स्थान जाकर दूसरी अग्रहणद्रव्यवर्गणासम्बन्धी उत्कृष्ट वर्गणा होती है । यह अपनी जघन्य वर्गणासे अपनी उत्कृष्ट वर्गणा अनन्तगुणी है । गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धों के अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है । यह आठवी वर्गणा है । ८ । यह पाँच शरीरोंके ग्रहणयोग्य नहीं है इसलिये इसकी अग्रहण द्रव्यवर्गणा संज्ञा है । शंका- जघन्यसे उत्कृष्ट वर्गणा अनन्तगुणी है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- अविरुद्ध आचार्यवचनसे जाना जाता है । अग्रहण द्रव्यवर्गणाओंके ऊपर भाषा द्रव्यवर्गणा है ॥ ८३ ॥ उत्कृष्ट अग्रहण द्रव्यवर्गणा में एक अंकके प्रक्षिप्त करने पर सबसे जघन्य भाषा द्रव्यवर्गणा होती है । इससे आगे एक एक अधिकके क्रमसे अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण स्थान जाकर भाषा द्रव्यवर्गणासम्बन्धी उत्कृष्ट द्रव्यवर्गणा होती है । यह अपने जघन्यसे उत्कृष्ट विशेष अधिक है। विशेषका प्रमाण कितना है ? अपनी जघन्य वर्गणाका अनन्तवाँ भाग विशेषका प्रमाण | प्रतिभाग क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंका अनन्तवाँ भाग प्रतिभाग है । यह नौवीं वर्गणा है । ९ । भाषा द्रव्यवर्गणाके परमाणुपुद्गलस्कन्ध चारों भाषाओंके योग्य होते हैं तथा ढोल, भेरी, नगारा और मेघका गर्जन आदि शब्दोंके भी योग्य ये ही वर्गणायें होती हैं । शंका- नगारा आदिके शब्दोंकी भाषा संज्ञा कैसे है ? * ता. प्रतो ' ( अ ) गहण - अ आ प्रत्यो: 'अगहण - ' इति पाठ । इति पाठ: । ता. प्रती वग्गणा ( ए ) इति पाठ | Jain Education International ता. अ. आ. प्रतिषु - गुणों अ. प्रती ' पाओग्गपटह, इति पाठ: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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