________________
छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, ८१. सव्वजहण्णवग्गणा होदि । तदो रूवृत्तरकमेण अभवसिद्धिएहि अणंतगण-सिद्धाणमणं. तभागमेत्तद्धाणं गंतूण उक्कस्सिया अगहणदव्यवग्गणा होदि । जहण्णादो उक्कस्सिया अणंतगुणा। को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो। एवमेसा छट्ठी वग्गणा ६ । कधमेदामि वग्गणाणमेयत्तं ? अगहणभावेण । पंचण्णं सरीराणं भासा-मणाणं च अजोग्गा जे पोग्गलक्खंधा तेसिमगहणवग्गणा त्ति सणा ।
अगहणदववग्गणाणमुवरि तेयादवववग्गणा णाम । ८१ ॥ उक्कस्सियाए अगहणदव्ववग्गणाए उवरि एगरूवे पक्खित्ते सवजहणिया तेजा. दव्ववग्गणा होदि। तदो रूवत्तरकमेण अभवसिद्धिएहि अणंतगुण-सिद्धाणमणंतभागमेत. मध्दाणं गंतूण उक्कस्सिया तेजइयसरीरदव्यवग्गणा होदि । जहण्णादो उक्कस्सा विसेसा. हिया । केत्तियमेत्तो विसेसो? अभवसिदिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो। एसा सत्तमी वग्गणा ७। एदिस्से पोग्गलक्खंधा तेजइयसरीरपाओग्गा तेणेसा गहणवग्गणा।
तयादवववग्गणाणमरि अगहणदव्ववग्गणा णाम ।। ८२ ॥ तेजइयसरीरउक्कस्सदव्य वग्गणाए उरि एगरूवे पक्खि ते बिदियअगहणदव्ववग्गणाए पढमिल्लिया सव्वजहण्णअगहणदव्ववग्गणा होदि। तदो रूवुत्तरकमेण अभवसिदिएहि अणंतगुण-सिध्दाणमणंतभागमेत्तमदाणं गंतूग बिदियअगहणवव्ववग्गणाए सर्वजघन्य वर्गणा होती है। फिर एक एक बढाते हुये अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण स्थान जाकर उत्कृष्ट अग्रहण द्रव्यवर्गणा होती है। यह जघन्यसे उत्कृष्ट अनन्तगुणी होती है। गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है। इस प्रकार यह छठी वर्गणा है । ६ ।
शंका-- इन वर्गणाओंमें एकत्व कैसे है ? समाधान -- अग्रहणपनेकी अपेक्षा इनमें एकत्व है।
पाँच शरीर तथा भाषा और मनके अयोग्य जो पुद्गलस्कन्ध हैं उनकी अग्रहणवर्गणा संज्ञा है।
अग्रहण द्रव्यवर्गणाके ऊपर तैजसशरीरद्रव्यवर्गणा है ॥ ८१ ।।
उत्कृष्ट अग्रहण द्रव्यवर्गणामें एक अंकके मिलानेपर सबसे जघन्य तेजसशरीर द्रव्यवर्गणा होती है । पुनः एक एक अधिकके क्रमसे अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण स्थान जाकर उत्कृष्ट तैजसशरीरद्रव्यवर्गणा होती है । यह अपने जघन्यसे उत्कृष्ट विशेष अधिक है। विशेषका प्रमाण क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण है। यह सातवीं वर्गणा है । ७ । इसके पुद्गलस्कन्ध तेजसशरीरके योग्य होते हैं, इसलिये यह ग्रहणवर्गणा है।
तैजसशरीरद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर अग्रहण द्रव्यवर्गणा है ॥ ८२ ॥ उत्कृष्ट तेजसशरीर द्रव्यवर्गणामें एक अंकके मिलाने पर दूसरी अग्रहण द्रव्यवर्गणासंबंधी ४ ता. अ. आ. प्रतिष -मेदेसि ' इति पाठः |
अ. आ. प्रत्योः -सरीरपाओग्गा ' इति पाठ:1 *ता प्रतौ -सरीरदब्ध । इति पाठः ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org