________________
५, ६, ८०.)
बंधणाणुयोगद्दारे अगहणदव्ववग्गणा भाग मेत्तो। परमाणपोग्गलदब्यवग्गणसहो ति-चदुपदेसियादिसु सम्वत्थ जोजेयव्वो अंतदीवयत्तादो । एबमेसा अपंतपदेसियदव्ववग्गणा चउत्थी ४ । कुदो? एदासिमेयत्तं ? अणंतभावेण । एदाओ चत्तारि वि वग्गणाओ अगेज्झाओ।
अगंताणतपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणाणमुवरि आहारदव्ववग्गणा णाम ॥ ७९ ॥
उकास्सअणंतपदेसियदव्यवग्गणाए उवरि एगरूवे पक्खित्ते जहणिया आहारदव्ववग्गणा होदि । तदो रूवुत्तरकमेण अभवसिद्धिएहि अणंतगण* सिद्धाणमणंतभागमेत्तवियप्पे गंतूण समप्पदि । जहण्णादो उक्कस्सिया विसेसाहिया । विसेसो पुण अभवसिद्धिएहि अणंतगणो सिद्धाणमणंतभागमेत्तो होतो वि आहार उक्कस्सदम्ववग्गणाए अणंतिमभागो । कधमेदं णव्वदे? अविरुद्धाइरियवयणादो। ओरालिय.. वेउव्विय- आहारसरीरपाओग्गपोग्गलक्खंधाणं आहारदव्ववग्गणा ति सण्णा । एवमेसा पंचमी वग्गणा ५ ।
आहारदव्ववग्गणाणमुवरि अगहणदव्ववग्गणा णाम ॥ ८० ॥ उक्कस्सआहारदव्दवग्गणाए उरि एगरूवे पक्खित्ते पढ़मअगहणदव्ववग्गणाए
__ सूत्र में आया हुआ 'परमाणुपुद्गल द्रव्यवर्गणा' शब्द त्रिप्रदेशी और चतुःप्रदेशी आदि पदोंमें सर्वत्र जोड़ना चाहिये, क्योंकि वह अन्तदीपक है । इस प्रकार यह अनन्तप्रदेशी द्रव्यवर्गणा चौथी है । ४ । ये सब वर्गणायें एक क्यों हैं ? क्योंकि, ये सब अनन्तरूपसे एक हैं । ये चारों ही वर्गणायें अग्राह्य हैं।
विशेषार्थ-प्रथम परमाणुवर्गणा, दूसरी संख्यातवर्गणा, तीसरी असंख्यातवर्गणा और चौथी अनन्तवर्गणा ये चार प्रकारकी वर्गणायें अग्राह्य हैं। इसका यह आशय है कि जीव द्वारा इनका ग्रहण नहीं होता। शेष कथन सुगम है। अनन्तानन्तप्रदेशी परमाणुपुद्गल द्रव्यवर्गणाके ऊपर आहारद्रव्यवर्गणा है । ७९॥
__उत्कृष्ट अनन्तप्रदेशी द्रव्यवर्गणायें एक अंकके मिलाने पर जघन्य आहार द्रव्यवर्गणा होती है। फिर एक अधिकके क्रससे अभव्योंसे अनन्तगणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण भेदोंके जाने पर अन्तिम आहार द्रव्यवर्गणा होती है । यह जघन्यसे उत्कृष्ट विशेष अधिक है। विशेषका प्रमाण अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण होता हुआ भी उत्कृष्ट आहार द्रव्यवगंणाके अनन्तवें भागप्रमाण है।
शका यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-अविरुद्ध आचार्यों के वचनसे जाना जाता है ।
औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीरके योग्य पुद्गल स्कन्धोंकी आहारद्रव्यवर्गणा संज्ञा है । इस प्रकार यह पाँचवीं वर्गणा है । ५।।
आहारद्रव्यवर्गणाके ऊपर अग्रहणद्रव्यवर्गणा है ॥ ८० ॥ उत्कृष्ट आहार द्रव्यवर्गणामें एक अंकके मिलाने पर प्रथम अग्रहण द्रव्यवर्गणासम्बन्धी अ. आ. प्रत्यो. ' -- मग भाग-' इति पाठः । * अ. प्रतो — गुणं ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal se Only
www.jainelibrary.org