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________________ ५८) छक्खंडागमे वग्गणा-खडं ( ५, ६, ७८ माणपोग्गलदव्ववग्गणप्पहडि जाव उक्कस्ससंखेज्जपदेसियदव्ववग्गणे त्ति ताव एसा संखेज्जपदेसियवग्गणा णाम रूवणक्कस्ससंखेज्जमेत्तवियप्पा । एवमेदाओ दोणि वग्गणाओ२। उक्कस्ससंखेज्जपदेसियपरमाणुपोग्गलवग्गणाए उरि एगरूवे पक्खित्ते जहणिया असंखेज्जपदेसियदव्ववग्गणा होदि । पुणो रूवत्तरकमेण असंखेज्जपदेसियदव्ववग्गणा ताव गच्छंति जाव उक्कस्सअसंखेज्जासंखेज्जपदेसियदव्ववग्गणे त्ति । उक्कस्सअसंखेज्जासंखेज्जादो उक्कस्ससंखेज्जे सोहिदे सुद्धसेसम्मि जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाओ चेव असंखेज्जपदेसियवग्गणाओ । एदाओ संखेज्जपदेसियवग्गणाहितो असंखेज्जगणाओ। को गुणगारो? असंखेज्जा लोगा । एदाओ सवाओ वि तदिया असंखेज्जपदेसियवग्गणा होदि ३ । __परित्त-अपरित्तवग्गणाओ सुत्तद्दिवाओ अणंतपदेसियवग्गणासु चेव णिवदंति, अणंत-अणंताणतेहितो वदिरित्तपरित्त अपरित्ताणमभावादो। तेण तस्विसेसणभावेण परित्तापरित्तणिद्देसो परवेयन्वो। उक्कस्सअसंखेज्जासंखेज्जपदेसियपरमाणपोग्गलदव्ववग्गणाए उरि एगरूवे पक्खित्ते जहणिया अणंतपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा होदिातदो रूवत्तरकमेण अभवसिद्धिएहि अणंतगुणं सिद्धेहितो अणंतगुणहीणमद्धाणं गच्छदि । सगजहण्णादो अणंतपदेसिय. उक्कस्सवग्गणाणंतगुणा को गुणगारो? अभवसिद्धिएहितो अणंतगुणो सिद्धाणमणंतिम. परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणासे लेकर उत्कृष्ट संख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणा तक यह सब संख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणा है । इसके एक कम उत्कृष्ट संख्यातभेद होते हैं । इस प्रकार ये दो वर्गणायें हुईं।२। उत्कृष्ट संख्यातप्रदेशी परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणामें एक अंकके मिलाने पर जघन्य असंख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणा होती है । पुनः उत्तरोत्तर एक एकके मिलाने पर असंख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणायें होती हैं और ये सब उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणाके प्राप्त होने तक होती हैं। उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातमेंसे उत्कृष्ट संख्यातके न्यून करने पर शेष में जितने रूप ( अंक ) हैं उतनी ही असंख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणायें होती हैं । ये संख्यातप्रदेशी वर्गणाओंसे असंख्यातगुणी होती हैं । गुणकार क्या है ? असंख्यातलोक गुणकार है । ये सब ही तीसरी असंख्यातप्रदेशी वर्गणा है । ३। सूत्र में कही गई परीतवर्गणायें और अपरीतवर्गणायें अनन्तप्रदेशी वर्गणाओंमें ही सम्मिलित हैं, क्योंकि, अनन्त और अनन्तानन्तसे अतिरिक्त परीत और अपरीत संख्या उपलब्ध नहीं होता। इसलिये अनन्तके विशेषणरूपसे हो परीत और अपरीतके निर्देशका कथन करना चाहिये । उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातप्रदेशी परमाणुपुद्गल द्रव्यवर्गणामें एक अंकके मिलाने पर जघन्य अनन्तप्रदेशी परमाणुपुद्गल द्रव्यवर्गणा होती है । पुनः क्रमसे एक एककी वृद्धि होते हुये अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण स्थान आगे जाते हैं । अपने जघन्यसे अनन्तप्रदेशी उत्कृष्ट वर्गणा अनन्तगुणी होती है । गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है। "अ. आ. प्रत्योः 'तव्विसेसेण-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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