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________________ ५, ६, ७८. ) बंधणाणुयोगद्दारे तिपदेसियादिपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणाओ (५७ संकप्पियसरूवा; उडाधोमज्झिमभागाणं उवरिमो वरिमभागाणं च कप्पणाए विणा उवलंभादो। ण च अवयवाणं सव्वत्थ विभागेण होदव्वमेवे त्ति णियमो, सयलवत्थूणमभावप्पसंगादो। ण च भिण्णपमाणगेज्झाणं भिण्णदिसाणं च एयत्तमस्थि, विरोहादो। ण च अवयवेहि परमाणू णारद्धो, अवयवसमूहस्सेव परमाणुत्तदसणादो। ण च अवयवाणं संजोगविणासेण होदव्वमेवे ति णियमो, अण्णादिसंजोगे तदभावादो। तदो सिद्धा दुपदेसियपरमाणपोग्गलदव्ववग्गणा । एसा परूवणा उवरि सम्वत्थपरूवेदव्व।। एवं तिपदेसिय-चदुपदेसिय-पंचपदेसिय-छप्पदेसिय-सत्तपदेसियअट्ठपदेसिय-णवपदेसिय-दसपदेसिय-संखेज्जपदेसिय-असंखेज्जपदेसियपरित्तपदेसिय-अपरित्तपदेसिय-अणंतपदेसिय-अणंताणंतपदेसियपरमाणपोग्गलदव्ववग्गणा णाम ।। ७८ ॥ पुवपरूविदएयपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा* एयवियप्पा। दुपदे सियपरकहना ठीक नहीं है, क्योंकि, परमाणु ऊर्श्वभाग, अधोभाग और मध्यभाग तथा उपरिमोपरिमभाग कल्पनाके विना भी उपलब्ध होते हैं। तथा परमाणु के अवयव हैं इसलिये उनका सर्वत्र विभाग ही होना चाहिये ऐसा कोई नियम नहीं है, क्योंकि, इस तरह माननेपर तो सब वस्तुओंके अभावका प्रसंग प्राप्त होता है । जिनका भिन्न भिन्न प्रमाणोंसे ग्रहण होता है, और जो भिन्न भिन्न दिशावाले हैं वे एक हैं यह कहना भी ठीक नहीं है; क्योंकि, ऐसा माननेपर विरोध आता है । अवयवोंसे परमाणु नहीं बना है यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, अवयवोंके समूहरूप ही परमाणु दिखाई देता है। तथा अवयवोंके सयोगका विनाश होना चाहिये यह भी कोई नियम नहीं है, क्योंकि, अनादि संयोगके होनेपर उसका विनाश नहीं होता। इसलिये द्विप्रदेशी परमाणु पुद्गल द्रव्यवर्गणा सिद्ध होती है । यह प्ररूपणा आगे सर्वत्र करनी चाहिये। विशेषार्थ- यहाँ प्रसंगसे परमाणु सावयव है कि निरवयव इस बातका विचार किया गया है। परमाणु एक और अखण्ड है, इसलिये तो वह निरवयव माना गया है और उसमें ऊर्ध्वादि भाग होते हैं इसलिये वह सावयव माना गया है। द्रव्याथिकनय अखण्ड द्रव्यको स्वीकार करता है और पर्यायाथिकनय उसके भेदोंको स्वीकार करता है। यही कारण है कि द्रव्याथिकनयकी अपेक्षा परमाणुको निरवयव कहा है और पर्यायाथिकनयकी अपेक्षा सावयव कहा है। परमाणुका यह विश्लेषण केवल बुद्धिका व्यायाम नहीं है, किन्तु वास्तविक है ऐसा यहाँ समझना चाहिये। इस प्रकार त्रिप्रदेशी, चतुःप्रदेशी, पञ्चप्रदेशी, षट्प्रदेशी, सप्तप्रदेशी, अष्टप्रदेशी, नवप्रदेशी, दशप्रदेशी, संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी, परीतप्रदेशी, अपरीतप्रदेशी. अनन्तप्रदेशी और अनन्तानन्तप्रदेशी परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा होती है ।। ७८ ॥ पहले कही गई एकप्रदेशी परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा एक प्रकारकी होती है । तथा द्विप्रदेशी * अ. आ. प्रत्योः -परिमो · इति पाठः। ता. प्रतौ । उवरिमसव्वत्थ ' इति पाठः 1 * ता. प्रती '-वग्गणा (ए)' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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