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________________ ५६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ७७. णए अवलंबिज्जमाणे दोण्णं परमाणणं सिया सव्वप्पणा समागमो; णिरवयवत्तादो। जे जस्स कज्जस्स आरंभया परमाणू ते तस्स अवयवा होति । तदारद्ध कज्ज पि अवयवी होदि । ण च परमाणु अनुहितो णिप्पज्जदि, तस्त आरंभयाणमण्णेसिमभावादो। भावे वा ण एसो परमाण; एत्तो सुहमाणमसि संभवादो । ण च एगसंखंकिर्याम्म परमाणम्मि बिदियादिसंखा अस्थि; एक्कस्स दुब्भावविरोहादो। कि च जदि परमाणुस्स अवयवो अस्थि तो परमाणुणा अवविगा होदव्वं । ण च एवं; अवयव विभागेण अवयवसंजोगस्स विणासे संते परमाणुस्स अभावप्पसंगादो । ण च एवं; कारणाभावेण सयलथलकज्जाणं पि अभावप्पसंगादो। ण च कप्पियसरूवा अवयवा होंति; अव्ववत्थापसंगादो । तम्हा परमाणुणा गिरवयवेण होदव्वं । तदो सिद्धो सव्वप्पणा परमाणूणं सिया समागमो। ण च णिरवयवपरमाणहितो थूलकज्जस्स अणुप्पत्ती; गिरवयवाणं पि परमाणणं सवप्पणा समागमेण थूलकज्जप्पत्तीए विरोहासिद्धोदो। पज्जवट्टियणएर अवलंबिज्जमाणे सिया एगदेसेण समागमो । ण च परमाणूणमवयवा णस्थि; उरिमहेटिममज्झिमोवरिमोवरिमभागाणमभावे परमाणुस्स वि अभावप्पसंगादो। ण च एदे भागा समाधान-- यहाँ इस शंकाका समाधान करते हैं कि द्रव्याथिक नयका अवलम्बन करनेपर दो परमाणुओंका कथंचित् सर्वात्मना समागम होता है, क्योंकि, परमाणु निरवयव होता है। जो परमाणु जिस कार्यके आरम्भक होते हैं वे उसके अवयव होते हैं और उनके द्वारा आरम्भ किया गया कार्य अवयवी होता है। परमाणु अन्यसे उत्पन्न होता है यह कहना ठीक नहीं है; क्योंकि, उसके आरम्भक अन्य पदार्थ नहीं पाये जाते। और यदि उसके आरम्भक अन्य पदार्थ होते हैं ऐसा माना जाता है तो यह परमाणु नहीं ठहरता, क्योंकि, इस तरह इससे भी सूक्ष्म अन्य पदार्थों का सद्भाव सिद्ध होता है । एक संख्यावाले परमाणु में द्वितीयादि संख्या होती है यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, एकको दोरूप मानने में विरोध आता है। दूसरी बात- यदि परमाणुके अवयव होते हैं ऐसा माना जाय तो परमाणुको अवयवी होना चाहिये । परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, अवयवके विभागद्वारा अवयवोंके संयोगका विनाश होनेपर परमाणुका अभाव प्राप्त होता है। पर ऐसा है नहीं, क्योंकि, कारणका अभाव होनेसे सब स्थल कार्योंका भी अभाव प्राप्त होता है। परमाणुके कल्पितरूप अवयव होते हैं, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, इस तरह माननेपर अव्यवस्था प्राप्त होती है। इसलिये परमाणुको निरवयव होना चाहिये। अत: सिद्ध होता है कि परमाणुओंका कथंचित् सर्वात्मना समागम होता है। निरवयव परमाणुओंसे स्थूल कार्यकी उत्पत्ति नहीं बनेगी यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, निरवयव परमाणुओंके सर्वात्मना समागमसे स्थूल कार्यकी उत्पत्ति होने में कोई विरोध नहीं आता । पर्यायाथिकनयका अवलम्बन करनेपर कथंचित् एकदेशेन समागम होता है। परमाणुके अवयव नहीं होते यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, यदि उसके उपरिम, अधस्तन, मध्यम और उपरिमोपरिम भाग न हों तो परमाणुका ही अभाव प्राप्त होता है। ये भाग कल्पितरूप होते हैं यह 8 अ. प्रती 'ट्ठियाणए ' इति पाठः ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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