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________________ छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ५४ ) ( ५, ६, ७६. आइल्लाणं दोष्णं चैव अणुओगद्दाराणं परूवणं काऊण सेसतत्थतणचोद्दसेहि अणुओगद्दारेहि वग्गणपरूवणमकाऊण वग्गणदव्वसमुदाहारो किमिदि वोत्तुमारद्धो ? ण वग्गणपरूवणा वग्गणाणमेगसेड भणदि । वग्गणदव्वसमुदाहारो पुण वग्गणाणं णाणेगसेडी भद, तेण वग्गणदन्त्र समुदाहारपरूवणा वग्गणपरूवणाविणाभाविणि त्ति कट्टु वग्गणदव्वसमुदाहारो वोत्तमाढत्तो; * अण्णहा गंथबहुत्तभएण पुनरुत्तदोसप्प संगादो । वग्गणपरूवणदाए इमा एयपदेसियपरमाणुषोग्गलदव्ववग्गणा णाम ॥ ७६ ॥ " एत्थ ताव एगसेमिस्सिदूण वग्गणपरूवणं कस्सामो- एगपदे सियपोग्गलदव्ववग्गणा परमाणुसरूवा ; अण्णहा एगपदेसिय त्ति विसेसणाणुववत्तीए परमाणू च अपच्चवखो; 'व इंदिए गेज्झ' * इदि वयणादो । तदो तत्थ इमा इदि पच्चक्खणिद्दसो ण घडदे ? ण, आगमपमाणेण सिद्धपरमाणुविसयबोहे पच्चक्खे संते पच्चक्खणिद्दे सोववत्तीए परियम्मे परमाणू अपदेसो त्ति वृत्तो, एत्थ पुण परमाणू एयपदेसो त्ति भणिदो कधमेदेसि सुत्ताणं ण विरोहो ? ण एस दोसो; एगपदेसं मोत्तूण विदियादिपदेसाणं तत्थ पडिहरणादो । न विद्यन्ते द्वितीयादयः प्रदेशाः यस्मिन् सोऽप्रदेशः परमाणुप्रारम्भके दो ही अनुयोगद्वारोंका कथन करके और शेष चौदह अनुयोगद्वारोंके द्वारा वर्गणाका कथन न करके वर्गेणाद्रव्यसमुदाहारका कथन किसलिए किया जा रहा है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, वर्गणाप्ररूपणा अनुयोगद्वार वर्गणाओंकी एक श्रेणिका कथन करता है, किन्तु वर्गणाद्रव्यसमुदाहार वर्गणाओंकी नाना और एक श्रेणियोंका कथन करता है, इसलिए वर्गणाद्रव्यसमुदाहारप्ररूपणा वर्गणाप्ररूपणाकी अविनाभाविनी है ऐसा समझ कर वर्गणाद्रव्यसमुदाहारका कथन आरम्भ किया है । अन्यथा ग्रन्थके बहुत बढ़ जानेका भय था जिससे पुनरुक्त दोनका प्रसंग आता । वर्गणाकी प्ररूपणा करनेपर यह एकप्रदेशी परमाणुपुद् गलद्रव्यवर्गणा है । ७६ ॥ यहाँ सर्व प्रथम श्रेणिका अवलम्बन लेकर वर्गणाका कथन करते हैं-- एकप्रदेशी पुद्गलद्रव्यवर्गणा परमाणुस्वरूप होती है; अन्यथा 'एकप्रदेशी' यह विशेषण नहीं बन सकता । शंका- परमाणु अप्रत्यक्ष होता है; क्योंकि, 'उसका इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं होता ' ऐसा सूत्रवचन है । इसलिये उसके लिये सूत्रमें 'इमा' ऐसा प्रत्यक्षनिर्देश नहीं बन सकता ? समाधान- नहीं, क्योंकि, आगमप्रमाणसे सिद्ध परमाणुविषयक ज्ञानके प्रत्यक्षरूप होनेपर ' इमा' इस प्रकार प्रत्यक्ष निर्देश बन जाता है । शका - परिकर्म में परमाणुको अप्रदेशी कहा है परन्तु यहाँपर उसे एकप्रदेशी कहा हैं, इसलिये इन दोनों सूत्रोंमें विरोध कैसे नहीं होगा ? ܘ समाधान- यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि, परमाणुके एकप्रदेशको छोड़कर द्वितीयादि प्रदेश नहीं होते इस बातका परिकर्म में निषेध किया है। जिसमें द्वितीयादि प्रदेश नहीं हैं वह ता. आ. प्रत्यो: 'हारो त्ति किमिदि इति पाठ: । -मादत्तादो' इति पाठः । Jain Education International अ. प्रती ' -मादत्तो आ प्रती ता. प्रतो 'इंदिग्रगेज्झं' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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