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५, ६, ७५.) बंधणाणुयोगद्दारे वग्गणापरूवणादिअणुयोगद्दारणिद्देसो (५३ विरोहाभावादो।
उजुसुदो ट्ठवणवग्गणां णेच्छदि ।। ७३ ॥ अण्णदवस संकप्पवसेण अण्णदव्वसरूवावत्तिविरोहादो। सद्दणओ णामवग्गणां भाववग्गणां च इच्छदि ।। ७४॥
एदस्स णयस्स विसए अण्णेसि णिखेवाणमभावादो । एत्थ केण णिक्खेवेण पयदं ? णोआगमपोग्गलदव्वणिक्खेवेण पय, जीव-धम्माधम्म-कालागासदव्वर वग्गणाहि एत्थ पओजणाभावादो।
वग्गणादव्वसमुदाहारे त्ति तत्थ इमाणि चोद्दस अणुयोगद्दाराणिवग्गणापरूवणा वग्गणाणिरूवणा वग्गणाधुवाधुवाणुगमो वग्गणासांतरणिरंतराणुगमो वग्गणाओजजुम्माणुगमो वग्गणाखेत्ताणुगमो वग्गणाफोसणाणुगमो वग्गणाकालाणुगमो वग्गणाअंतराणुगमो वग्गणाभावाणुगमो वग्गणाउवणयणाणुगमो वग्गणापरिमाणाणुगमो वग्गणाभागाभागाणुगमो वग्गणाअप्पाबहए त्ति ॥ ७५ ।।
वगणापरूवणं सोलसेहि अणुयोगद्दारेहि कहामो त्ति पइज्जां काऊण पुणो तस्थ
विरोध नहीं आता।
ऋजुसूत्रनय स्थापनावर्गणाको स्वीकार नहीं करता ।। ७३ ।। क्योंकि, संकल्पवश अन्य द्रव्यका अन्य द्रव्यरूपसे परिवर्तन होने में विरोध आता है।
शब्दनय नामवर्गणा और भाववर्गणाको स्वीकार करता है ॥ ७४ ।। क्योंकि, इस नयके विषय अन्य निक्षेप नहीं हैं। शका- यहाँ किस निक्षेपका प्रकरण है ?
समाधान-नोआगमपुद्गलद्रव्यनिक्षेपका प्रकरण है; क्योंकि, यहाँपर जीव, धर्म, अधर्म, काल और आकाश द्रव्यवर्गणाओंसे प्रयोजन नहीं है।
वर्गणाद्रव्यसमुदाहारका प्रकरण है। उसमें ये चौदह अनुयोगद्वार हैं- वर्गणाप्ररूपणा, वर्गणानिरूपणा, वर्गणाध्रुवाध्रुवानुगम, वर्गणासान्तर निरन्तरानुगम, वर्गणाओजयुग्गानगम, वर्गणाक्षेत्रानुगम, वर्गणास्पर्शनानुगम, वर्गणाकालानुगम, वर्गणाअन्तरानुगम, वर्गणाभावानुगम, वर्गणाउपनयनानुगम, वर्गणापरिमाणानुगम, वर्गणाभागाभागानुगम और वर्गणाअल्पबहुत्वानु गम ॥ ७५ ॥
शंका-वर्गणाप्ररूपणा सोलह अनुयोगद्वारोंके द्वारा करेंगे ऐसी प्रतिज्ञा वरके फिर वहाँ
४ अ. प्रतो-कालागमदब्ब- 'इति पाठः । Jain Education International
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